बुधवार, 23 जून 2010

gaurav tripathi

चिरन की चैखड़ी
पहले चिरन देवी पुलिस में थी। इसलिए होली और दिवाली पर हफ्ता लेने की आदत थी। अब हाथ की खुजली मिटाने का एक ही तरीका बचा था- मुहल्ले में स्टार पान की भंडार की दुकान पर चैखड़ी का। चिरन देवी चैखड़ी लगाकर लोगों के विवादों का निपटारा करतीं और लगे हाथ जेब गरम भी हो जाती।
इस बार होली पर फिर से चिरन की चैखड़ी लगी। चैखड़ी में एक पक्ष भगवा रंग तो दूसरा तिरंगा रंग पोते हुए पहुंचा। दोनों पक्ष एक ही बात पर अड़े थे, मुंबई हमारी है.... हमारी है।
शोर गुल सुन चिरन देवी को गुस्सा आ गया और पुलिसिया आवाज में दहाड़ीं- अबे चुप बे। ई फैसला हम करूंगी कि मुंबई किसकी है। ऐ गजोधर दोनों पार्टियों को अलग-अलग कर तो जरा। पूरी मुंबई को खरीद लिया है का। अबे ओ भगवाधारी सबूत दिखा तो बे।
सबूत का नाम सुन भगवाधारी पक्ष और बौखला गया। इतने में भगवा में लाल रंग घोलकर लगाए जांबांज ठोकरे नारा लगाते हुए आ गए- मैं अपनी मुंबई किसी को नहीं दूंगा, किसी को नहीं दूंगा.....। ठोकरे बोले-सदियों से मुंबई मराठी मानुषों की है। इस बार तो सबको बाहर निकालकर रहेंगे। इतने में तीन रंगों में पुता पक्ष तमतमाया- अरे कैसे निकालकर रहोगे। हमें तो विकास करना है। लड़ाई अब तू-तू मैं-मैं की जगह गाली गलौच तक जा पहुंची। भगवा रंग वाले बोले-विकास करना है तो अपने क्षेत्र का करोे जाकर। यहां के पीछे क्यों पड़े हो? दूसरे पक्ष ने अपनी आस्तीने ऊपर कीं-अपने क्षेत्र का विकास किया है आज तक हमने जो अब करेंगे। वो तो हमे अपनी पार्टी का विकास करना है। तुम्हे तो खाली यहीं शासन चलाना है, हमें तो पूरे देश में झंडे गाड़ने हैं। जांबांज ने थोड़ा टाॅपिक चेंज किया और अपनी उपलब्धि बताई-मराठियों ने बंबई को मुंबई बनाया। तुमने क्या किया? तीन रंग वाले अब तमतमाए- तुमने कैसे मुंबई बनाई। मुंबई तो सबकी है दो बार से हम राज कर रहे हैं। तो फिर कैसे? भगवाधारी पक्ष बोला-वो तो हमारे घर में कलह हो गई नहीं तो मुंबई पर तो हमारा ही राज था। तुम्हारे शासन में तो मुंबई में पाकिस्तानी आकर हमला कर गए। हमारे समय में तो हम ही इतने हमले कर देते थे कि बाहरी लोगों को चांस ही नहीं मिल पाता था।
दोनों पक्षों के बीच झगड़ा बढ़ता देख बेलन (क्योंकि पुलिस का डंडा नौकरी छूटने के साथ ही जब्त हो गया था, लेकिन उन्हें कुछ हाथ में लेकर चलने की आदत थी) टेबल पर जोर से मारते हुए चिरन देवी चिल्लाईं- ऐ बंद कर बे चिल्लम चिल्ली। और तू भगवाधारी! अरे क्या जरूरत पड़ी तुझे अभी ये मुद्दा उठाने की। इतने दिन से सारे देश के लोग रह रहे वहां पे। अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान को अभी निकालने की क्या सूझी। इस बार जांबांज ठाकरे और भगवाई दोनों बोले- मुद्दा तो उठाना ही पड़ेगा मैडम। विधानसभा चुनाव तो इन तीन रंग वालों ने जीत लिया। अब पालिका चुनाव तो जीतना ही पड़ेगा। वैसे भी हमारी हालत बहुत बदतर हो गई है, कोई दूसरा मुद्दा तो बचा ही नहीं है। खाने-पीने के लाले तक पड़ गए है। गुस्से में आकर मुंह से कुछ उल्टा सीधा निकल जाता है। अब वो चाहे अमिताभ बच्चन के बारे में हो या शाहरूख खान पर टिप्पणी। आप ही फैसला करें।
असली बात जानकर चिरन देवी ने अपनी टांगें बगल वाली कुर्सी पर लंबी कीं-मतलब यो बात खाने-पीने की है। खाना पीना तो मिल बांटकर चाहिए। और तू तीन रंगों वालों क्यों ना खाने देता इनको।
चिरन की चैखड़ी यह फैसला सुनाती है कि दोनों पक्षों के लोग मिल बांटकर खाओ। जनता को इन सब चीजों से कोई मतलब ना है। हां थोड़ा-थोड़ा इन मीडिया वालों को भी खिलाते रहो।
फैसला सुनकर दोनों पक्ष संतुष्ट हो गए। उन्होंने चिरन देवी को उपहार भेंट किए और होली पर हुड़दंग मचाने लगे।
बुरा मान भी लो, तो होली है।
गौरव त्रिपाठी
फोन-9411913230

गुरुवार, 17 जून 2010

garmi

गर्मी में गुंडागर्दी
-गौरव त्रिपाठी
गर्मी में लोगों के साथ संपादक को भी चैन नहीं है। जहां लोग घर से निकलने में डर रहे हैं वहीं संपादक ने गुंडों पर स्पेशल रिर्पोटिंग करने के लिए भेज दिया। एक तो गर्मी ऊपर से गुंडे। अब तो भगवान ही मालिक। खैर जैसे-तैसे शहर के एक नामचीन गुंडे के पास इंटरव्यू लेने पहुंचा। आफिस के बाहर बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था-अखिल भारतीय गुंडा सोसायटी, अध्यक्षः मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले। अंदर घुसते ही बायीं तरफ दीवार पर एक और बोर्ड लगा था जिस पर रेट लिस्ट लिखी थी-

अपराध कराने के रेट
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डराने-धमकाने के दस हजार
हाथ-पैर तुड़वाने के चालीस हजार
धरना प्रदर्शन कराने के अस्सी हजार
अपहरण कराने के एक लाख
मर्डर कराने के दो लाख
तीन मर्डर कराने के पांच लाख
दंगा कराने के दस लाख
नोट-सारा माल कैश लिया जाएगा, रुपये एक सीरिज में नहीं होने चाहिए। गर्मी में धरना प्रदर्शन कराने के लिए पहले समय ले लें। 15 जून से पहले तक काम कराने पर विशेष छूट। एडवांस बुकिंग जारी है।
रेट लिस्ट पढ़ते-पढ़ते किसी ने पीछे से धक्का मारकर सीधे गुंडा सोसायटी के अध्यक्ष के पास ही पहुंचा दिया। मुन्ना भाई सामने कुर्सी पर बैठे थे और एक हाथ की अंगूली में रिवाल्वर घुमा-घुमाकर फोन पर किसी को धमकी दे रहे थे। मुझे देखते ही मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले ने फोन रख अपनी मुंबइया भाषा में बोलना शुरू किया-क्या बे कहां से टपका रे तू ? क्या काम है बोल, रेट लिस्ट पढ़ लिया ना। सारा पैसा अभिच मांगता है। मैंने घबराते हुए समझाने की कोशिश की-नहीं भाई मैं बस बेसहारा टाइम का रिपोर्टर हूं और आपका इंटरव्यू लेने आया था। रिपोर्टर सुनते ही मुन्ना भाई भड़क गए-अबे अंदर किसने आने दिया बे इसको। अरे बाहर करो इस कागज कलम वाले को। बड़ी मगज मारी करते हैं रे। इतने में दो सांड टाइप दो गुंडे आकर मुझे उठाकर फेंकने ही लगे थे कि मैंने एक-दो नेताओं का नाम लेकर खुद को बचाया और मुन्ना जी की तारीफ कर इंटरव्यू के लिए पटाया।
मुन्ना भाई बोले-चल जल्दी पूछ, जो कुछ पूछना है। टाइम खोटी मत कर। मैंने अपना पहला सवाल किया-आपने गर्मी में धरना प्रदर्शन के लिए रेट में विशेष छूट क्यों दे रखी है ? मुन्ना बोले-अब देख जिस तरह ठंड आते ही अंडों की डिमांड बढ़ जाती है उसी तरह गर्मी आते ही हम गुंडों की डिमांड बढ़ जाती है। बोले तो गर्मी आते ही बिजली कटौती, पेयजल किल्लत वगैरह वगैरह की समस्या होने लगती है। इसलिए विपक्षी नेताओं को बैठे-बैठे एक मुद्दा मिल जाता है और धरना प्रदर्शन आदि करने के लिए अपुन लोगों के पास भीड़ लग जाती है। पहला जवाब कापी में नोट करने के बाद मैंने दूसरा सवाल किया-दंगा कराने का समय कौन सा उचित रहता है। भाई ने अपना चाकू मेरी नाक के चारों तरफ घुमाते हुए कहा-दंगे का तो ऐसा कोई फिक्स टाइम नहीं है लेकिन जब चुनाव के समय दो धर्मों के त्योहार एक साथ पड़ जाते हैं या एक शहर में दो धर्मों के बराबर-बराबर हों तो पासिबिलिटी बढ़ जाती है। नेता कनफ्यूजन में रहता है कि किस धर्म वाले लोगों का साथ दें। इसलिए दंगा करा देता है और बाद में जिसमें सबसे ज्यादा लोग आगे आते हैं उन्हीं के साथ हो लेते हैं। कभी-कभी जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने के लिए भी दंगे कराए जाते हैं। जोश में आए मुन्ना भाई के चाकू के वार से बचते हुए मैंने अपना अगला सवाल किया-लोग आपके पास अपहरण और हत्या कराने के लिए अधिकतर किन बातों को लेकर आते हैं। मर्डर के लिए बोले तो जर, जोरू और जमीन को लेकर ही लोग आते हैं। किसी को जायदाद चाहिए होती है या कोई अपनी बीवी को रास्ते से हटाकर दूसरी शादी करना चाहता हो या फिर जमीन हड़पने को लेकर विवाद हो सकता है। सबसे ज्यादा ये प्रेमी छोकरे लोग परेशान करते हैं। ये लड़की के चक्कर में इतने पागल हो जाते हैं कि खुद ही मर्डर कर देते हैं। इससे अपन लोगों के धंधे को नुकसान पहुंचता है। मैंने तीसरे सवाल के लिए जैसे ही मुंह खोला कि मुन्ना भाई ने अपनी रिवाल्वर घुसेड़ दी-बहुत बक-बक कर ली बे। अब आ ही गया है अपने अखबार में अपुन लोगों का एक विज्ञापन छापो। रिवाल्वर हटते ही मेरे मुंह से निकल गया-गुंडे का विज्ञापन। यह सुनते मुन्ना भाई दोबारा भड़क गए इस बार रिवाल्वर तानते मेरे माथे पर तानते हुए हड़काया-अबे गुंडा किसको बोला बे। अपुन गंुडा नहीं अपुन कर्मी है बे। मैंने कहा-कर्मी। हां अपराध कर्मी-मुन्ना जी ने क्लियर किया। चुपचाप लिख जो बोला जा रहा है- गबरू युवा लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। अब तक नौकरी नहीं मिली तो घबराइये नहीं हमारी अखिल भारतीय गंुडा सोसायटी ज्वाइन कीजिए। बंदूक, रिवाल्वर, तमंचा रखने वाले को प्राथमिकता दी जाएगी। एक-दो घंटे में कमाएं लाखों रुपये। संपर्क करें- अखिल भारतीय गुंडा सोसायटी के अध्यक्ष मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले से।
एक घंटे के बाद सर से रिवाल्वर हटते ही मैंने सीधे आफिस की तरफ दौड़ लगा दी। संपादक जी को इंटरव्यू और विज्ञापन देकर राहत की सांस ली।