रविवार, 14 नवंबर 2010

राजनीति के प्रकार

हमारा देश एक राजनीति प्रधान देश है, पहले यह गांव प्रधान हुआ करता था। अब राजनीति केवल सत्ताधारी नेता या विपक्ष के नेता ही नहीं करते बल्कि साधारण लोग भी इसमें माहिर होने लगे हैं। घर हो या आफिस हर जगह राजनीति हावी है। घर में सास की बहू से तो बहू की सास से राजनीति; आफिस में आगे बढ़ने के लिए अपने सहयोगियों से राजनीति, जमीन जायदाद हड़पने के लिए अपने सगे संबंधियों से राजनीति, मोहल्ले में अपना रूतबा कायम रखने के लिए पड़ोसियों से राजनीति, कालेज में लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए दोस्तों को नीचा दिखाने की राजनीति होना अब आम बात हो गई है। यहां पर हर प्रकार की राजनीति होती है। कुछ लोगों का तो यहां तक मानना है कि अगर किसी ने राजनीति नहीं सीखी तो उसका जीना ही मुश्किल है। इसलिए हर मां शादी से पहले अपनी बेटी को ‘किस तरह ससुराल में पति को अलग करना है, ससुराल में कैसे बंटवारा करवाना है‘ सिखा-पढ़ाकर भेजती है। इसलिए जिन लोगों अभी तक राजनीति नहीं सीख पाई है, वो नीचे लिखे राजनीति के पांच प्रकारों को आज से ही प्रयोग करना शुरू कर दें-चापलूस राजनीति: इस प्रकार की राजनीति सभी जगह इस्तेमाल की जा सकती है। आफिस में कर्मचारी अपने बॉस की, राजनीतिक पार्टी में आम कार्यकर्ता अपने पार्टी अध्यक्ष की और घर में बहू अपनी सास की चापलूसी कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। इसके लिए अगर अपने बॉस के तलुवे भी चाटने पड़े तो भी हिचकिचना नहीं चाहिए। बॉस अगर कहे दिन तो दिन, रात कहे तो रात। बॉस की हां में हां मिलना बहुत जरूरी है। सच्चा चापलूस बनने के लिए अपने आफिस के काम से ज्यादा बॉस के घर का काम अधिक महत्वपूर्ण होता है। आप अपनी जरूरी फाइल अधूरी छोड़कर बॉस के घर के लिए सब्जी ला सकते हैं, उनकी पत्नी को शॉपिंग करा सकते हैं, बिजली-फोन आदि का बिल भर सकते हैं...।ओछी राजनीति: यह राजनीति बहुत मारक होती है। इस राजनीति के तहत आपको अपने प्रतिद्वंद्वी कर्मचारी की गलतियां बॉस को दिखानी रहती हैं। इसी के साथ अपने बॉस की झूठी तारीफ बार-बार करनी रहती है। इससे बॉस खुश रहते हैं और आपके प्रमोशन के चांस बढ़ जाते हैं। इस प्रकार की राजनीति को बहू अपनी सास पर भी अपना सकती हैं।सोची राजनीति: ऐसी राजनीति करने के लिए काफी सूझबूझ की जरूरत होती है। इसमें अपने प्रतिद्वंद्वी की राह में हमेशा रोड़े अटकाते रहना पड़ता है। उसकी बुराइयों पर नमक-मिर्च डालकर बॉस को बताते रहना पड़ता है। कुछ ऐसी साजिश करनी पड़ती है, जिससे बॉस आपके प्रतिद्वंद्वी को छोड़ बस आपको ही अपना खास मानने लगे। राजनीतिक दल अधिकतर जनता के साथ इस प्रकार की राजनीति करते रहते हैं। दबाव की राजनीति: आफिस में कोई अगर आपसे बेहतर काम करने वाला आ जाए तो यह राजनीति आपके लिए कारगर साबित हो सकती है। अपने प्रतिद्वंद्वी पर काम का इतना दबाव डाल दो कि वह अपनी प्रतिभा दिखाई न पाए और आपका रास्ता प्रस्सत हो जाए।अवसरवादी राजनीति: यह राजनीति हमेशा रामबाण साबित हुई है। बस आपको अपने दुश्मन की एक बड़ी गलती का इंतजार करना रहता है और सारे पत्ते आपके हाथ में। इस राजनीति के प्रहार से न जाने कितने मंत्रियों को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, न जाने कितनी सासों को अपने घर की चाबी अपनी बहुओं को देनी पड़ी।

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

शोक व्यक्तम समिति

नेताजी परेशान थे। लगातार हो रहे बम विस्फोटों, नक्सलियोें के हमलों, मंदिरों में भगदड़ से उठे मौत के तूफान ने उनकी कुर्सी को हिलाना शुरू कर दिया था। बार-बार की घटनाओं पर जांच का आश्वासन दे-दे कर थक चुके नेताजी अपनी कुर्सी पर चिपक कर बैठे थे। आदत से मजबूर मैं उनके हाल-चाल जानने पहुंच गया। मैंने देखा कि नेताजी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सो गए थे। सपना देखते-देखते चिल्ला रहे थे कि ”मुझे बड़ा दुःख है। तुरंत सहायता दी जाएगी.....“ नेताजी की ऐसी हालत देख मुझसे रहा नहीं गया। मैने उन्हें उठाया और कहा कि क्या हुआ नेताजी। चौंककर उठे नेताजी मुझे देखते ही बड़बड़ाने लगे-”घटना की जांच कराई जाएगी, दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा....” नेताजी का बयान सुन मैने उन्हें जैसे-तैसे शांत कराया। होश में आते ही नेताजी बोले-ओह तुम। अब तो सपने में भी बम धमाके सुनाई-दिखाई देते हैं। नेताजी का दुख मैं समझ रहा था।अपना दुख व्यक्त करते हुए वे बोले-क्या बताउं जब से यह बम धमाके, नक्सलियों के हमले होने लगे हैं, तब से विपक्षियों के हाथ मुद्दे आ गए हैं। आतंकवादी भी विस्फोट पर विस्फोट किए जा रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं। बिना कोई हरकत किए मैंने इतने साल बिता दिए। अब ये आतंकवादी बार-बार उल्टे, सीधे बयान देने को मजबूर कर रहे हैं। बड़ी मुश्किल से कोई पद मिला है। न जाने कितने पापड़ बेले, तब कहीं जाकर मंत्रालय के गेट पर एंट्री हो पाई। अब इन आतंकवादियों को कौन समझाए। लगता है ये आतंकवादी मेरा इस्तीफा दिलवाकर ही मानेंगे। इनका क्या है एक विस्फोट कर दिया और गायब। बाद में जिम्मेदारी भी ले ली। हम कैसे लें जिम्मेदारी। एक मामले को जैसे-तैसे निपटाता हूं तो दूसरा विस्फोट हो जाता है। नेताजी जी की हालत एकदम देवदास की तरह हो गई थी। मैंने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा-शांत हो जाइये नेताजी। ऐसा तो होता ही रहता है और वैसे भी हमारी जनता बहुत भुलक्कड़ है। सभी को शार्ट टाइम मेमोरी लॉस का लोचा है। कुछ दिनों बाद सब भूल जाएगी और अपने लिए रोटी, कपड़ा, मकान की जुगाड़ में लग जाएगी। आपको सिर्फ हादसों के समय बस कुछ देर जनता को सांत्वना देने की जरूरत है। अपने कुटिल चेहरे पर दो आंसू बहाकर बस शोक व्यक्त करने की जरूरत है। मेरे बातें सुनकर नेताजी की खोपड़ी ठनकी। बोले-बात तो तुम सही कह रहे हो। लेकिन ऐसे मौकों पर तो इन आंखों से आंसू निकलते ही नहीं हैं। बहुत कोशिश की पर क्या करें। ऊपर से ये मीडिया वाले अपने-अपने माइक हमारे मुंह में घुसेड़ देते हैं और बाद में पूछते हैं कि बताइये आपको कैसा लग रहा है? वो क्या कहते हैं कोई इमपरेसन ही नहीं आ पाता है। नेताजी की बात को समझते हुए मैंने उन्हें आइडिया दिया-क्यों न आप इसके लिए एक समिति का गठन कर दें। चेहरे के इमप्रेशन के लिए किसी अभिनेता को अपाइंट कर दें। इसी बहाने अभिनेता से नेता बने कार्यकर्ताओं को भी काम मिल जाएगा। नेताजी थोड़ा खुश हुए और बोले-ये अपना नवजोत सिंह सिद्धू कैसा रहेगा। ये तो क्रिकेटर भी रह चुका है। सुना है कि इसका शो भी बहुत अच्छा चल रहा था। मैंने नेताजी की बुद्धि को लानत देते हुए कहा-अरे ऐसा मत कीजिएगा। वो तो हमेशा हंसता रहता है। अपने शो लाफ्टर चैलेंज में भी बिना जोक के हंसता है और बीच-बीच में मुहावरे सुनाने लगता है। इस काम के लिए तो महिला कार्यकर्ताएं बिल्कुल फिट बैठेंगी। उदाहरण के तौर पर अब अभिनेत्री जया प्रदा को ही देख लीजिए रामपुर में सारे पार्टी कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद वे अपने चेहरे के दुखी इमप्रेशन की वजह से ही जीत गईं। आपको समिति में ऐसी अभिनेत्रियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। उनके चेहरे के भावों को देख लोग आलू, प्याज के बढ़ते भावों को भी भूल जाएंगे। नेताजी ने फिर अपनी असमंजसता जाहिर की-वो सब ठीक है। लेकिन इस समिति का शुभारंभ कब करूं। मैने अपने दिमाग पर जोर डालकर फिर आइडिया दिया-आप 15 अगस्त से इस समिति की शुरूआत क्यों नहीं करते? वैसे भी आपको इस दिन शहीदों की याद में मगरमच्छ के आंसू तो बहाने ही पड़ते हैं। मेरा आइडिया सुन नेताजी कुर्सी से उछल पड़े और बोले-वॉट एन आइडिया सर जी। बहुत अच्छा। तुम सही कह रहे हो। वैसे भी हर बार वही पुराने रटे-रटाए भाषण दे-देकर थक चुका हंू। अब तो महात्मा गांधी जी के अलावा किसी का नाम भी याद नहीं रह गया है। पिछली बार किसी मीडिया वाले ने राष्ट्र गान सुनाने को कह दिया तो वह भी ध्यान से उतर गया। अब तमाम झंझटों से छुटकारा मिल जाएगा। मैं तुरंत ही ऐसी “शोक व्यक्तम् समिति” गठित करता हूं। आइडिया पाकर नेताजी ने तुरंत पार्टी कार्यकर्ताओं की मीटिंग बुलाई। शोक व्यक्तम समिति की रूपरेखा तय की गयी। समिति के बजट में हर महीने दो कुंतल प्याज देने का प्रस्ताव पारित किया गया, जिससे समिति के अध्यक्ष को इमप्रेशन व्यक्त करने में बिल्कुल तकलीफ न हो। अभिनेता और अभिनेत्रियों का साथ देने के लिए कुछ रूदालियों का भी चयन किया गया। इस बार के स्वतंत्रता दिवस में शहीदों और महापुरूषों की यादें तो नहीं थीं। थे तो बस मगरमच्छ के झूठे आंसू।

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

संशोधित गीता के उपदेश

भक्तों के बार-बार तीखे प्रश्नों से त्रस्त पोंगा पंडितों ने इस बार भगवत गीता को ही बदलने का फैसला कर लिया। इसके लिए सभी पोंगा पंडितों की विशाल सभा बुलाई गई। नियत तिथि पर देश के सभी पोंगा-बाबा आदि पहुंच गए।
सभा में अध्यक्षता कर रहे निराशाराम बापू ने सबसे पहले बोलना शुरू किया-संतजनों! समय किसी का नहीं होता। परिवर्तन ही जीवन है। इसलिए समय के अनुसार चीजें बदलती रहनी चाहिए। यह बड़े दुख के कारण कहना पड़ रहा है कि 1950 में बना संविधान जहां कई बार संशोधित हो गया, वहीं लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाने वाली भगवत गीता एक बार भी संशोधित नहीं हुई। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए वो महाभारत युद्ध करने से पहले के थे। पांडवों को युद्ध के बाद क्या करना चाहिए था ये भगवान श्रीकृष्ण ने बताया ही नहीं। इसी के चलते पांडवों को मोक्ष पाने का सही रास्ता नहीं मिला। अब कलियुग में भक्तों की समस्याएं बढ़ गईं हैं। आए दिन भक्त उल्टे-सीधे प्रश्न पूछते हैं। जिनका उत्तर गीता में घंटों ढूढ़ने पर भी नहीं मिलता। अदालत में भी केवल गीता पर हाथ रखकर कसम खिलवा ली जाती है, यह नहीं देखा जाता कि गीता के उपदेश कितने पुराने हो गए हैं। इसके संशोधन के लिए आदेश दिया जाय। इसलिए अब हमें खुद इस काम के लिए आगे आना होगा। गीता में संशोधन के लिए सभी के विचार आमंत्रित हैं। इतना कहकर निराशाराम जी बैठ गए। अब पोंगा पंडित महासभा के अध्यक्ष अनियमिततानंद स्वामी खड़े हुए- हे साधू! गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। ये बात वर्तमान परिवेश में ठीक नहीं बैठती। कर्म हम करें और फल दूसरा खाए। इस उपदेश को जिसे सुना दो वह साधुओं के पास दोबारा नहीं लौटता। आजकल वैसे भी लोग बिना कर्म किए ही फल की इच्छा रखते हैं। सभी केवल लाटरी का नंबर पूछने आते हैं। बस एक बार लग जाए तो पूरी जिंदगी आराम ही आराम। इसलिए इस उपदेश को तत्काल प्रभाव से हटाना होगा।
इसके बाद दूसरे संत बाबा कामदेव ने हाथ जोड़कर अपने विचार रखना शुरू किये-संत जनों वेद-पुराणों को पढ़कर हम लोगों को सत्य बोलने को कहते हैं। लेकिन ऐसा अब संभव नहीं है। कलियुग में झूठ बोलना आम आदमी की मजबूरी ही नहीं बल्कि जरूरत भी है। आफिस में अगर आदमी झूठ न बोले कि उसकी पत्नी बीमार है तो उसे छुट्टी कैसे मिलेगी? अदालत में वकील झूठे गवाह या सबूत नहीं पेश करेगा तो वह मुकदमा कैसे जीतेगा? डॉक्टर अगर मामूली बुखार को टायफाइड बताकर मरीज से पैसे नहीं ऐंठेगा तो उसकी दुकान कैसे चलेगी? नेता अगर जनता से झूठे वादे नहीं करेगा तो वह चुनाव कैसे जीतेगा? कोई लड़का अगर किसी लड़की से झूठ नहीं बोलेगा तो वह अपनी चार-चार गर्लफ्रेंडों को मेंटेन कैसे करेगा? इसलिए इस कथन को बंद करना मानवहित में है। इस बार सबसे बड़े बाबा श्री श्री 2010 बाबा हवाईजहाज ने प्रवचन शुरू किया-भक्तजनों...। चारों तरफ महात्माओं को देखकर तुरंत बाबा गलती सुधारते हुए दोबारा बोले-क्षमा कीजिएगा श्रीमन्! दिनभर एक ही जैसा प्रवचन देते-देते आदत सी बन गई है। खैर हम लोग भारतवासियों को आपस में भाई-बहन ही बताते रह गए और महाराष्ट्र में राज ठाकरे मराठी मानुषों का राज बताकर सारी पब्लिसिटी ले गया। हमसे प्रवचन सुनने केवल बूढ़ी औरतें आती हैं। उधर, एकता कपूर ने घर में कलह और साजिश के नाटक दिखा-दिखाकर सारी जवान औरतों को अपनी तरफ खींच लिया। हम लोगों को अपने अंदर की शांति ढूंढ़ने का ही संदेश देते रहे। अब कदम उठाने ही पड़ेंगे। बहुत हो गयीं भाईचारे की बातें, आत्मसंतुष्टि का पपलू, सहनशीलता की सीमा।
सभा के खत्म होने के बाद गीता में संशोधन करने के 11 पोंगा पंडितों की टीम गठित की गई। टीम ने पांच सालों की कड़ी मेहनत के बाद “संशोधित गीता के उपदेश” नाम से नया ग्रंथ बाजार में उतारा। ग्रंथ के कुछ महत्वपूर्ण अंश यहां दिए जा रहे हैं:
0 काम करके कोई राजा नहीं बना है इसलिए फल की इच्छा ही सब कुछ है। फल प्राप्त करने के लिए अगर किसी को रिश्वत देनी/लेनी या घोटला करना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए।
0 झूठ बोलना कोई पाप नहीं है बल्कि काम आसान करने की युक्ति है। सतयुग में अगर हरिश्चंद्र झूठ बोल देते तो उन्हें अपना राजपाठ नहीं गंवाना पड़ता। जिंदगी भर सत्यवादी बनकर घूमते रहे क्या उखाड़ लिया। थोड़ा सा झूठ बोल देते तो जिंदगी भर राजपाठ का सुख भोगते और मरने से पहले एक बार गंगा नहा लेते तो सारे पाप धुल जाते।
0 पड़ोसी को सुखी देख जलना सीखो और उसे गड्ढे में धकेलने के हरसंभव प्रयास करो। जीवन में यदि आप सुखी नहीं हैं, तो आपके पड़ोसी को भी सुखी रहने का कोई हक नहीं।
0 परोपकार करना साधारण मनुष्य का कर्म नहीं है। इसलिए परोपकार का काम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। मनुष्य को हर काम में अपना लाभ देखना चाहिए।
0 किसी भी व्यक्ति का तब तक साथ देना चाहिए, जब तक उससे काम निकलता रहे। काम निकलने के बाद तुरंत अपना रंग बदल लेना चाहिए।
0 जैसा कि पुरानी गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि दुश्मन सिर्फ दुश्मन होता है चाहें वो अपना सगा संबंधी ही क्यों न हो। अब नई गीता में दुश्मनों का दायरा और भी बढ़ा दिया गया है। अब जमीन जायदाद को लेकर अगर माता-पिता या पत्नी ही क्यों न रास्ते में न आ रही हो। उसे हटाने से चूकना नहीं चाहिए।
स्थान अभाव के कारण सभी उपदेश नहीं लिखे जा सकते इसलिए पूरी जानकारी के लिए संशोधित गीता के उपदेश बाजार से खरीदकर पढ़ें।
धन्यवाद!

गौरव त्रिपाठी (उपसंपादक)
अमर उजाला, मानपुर पश्चिम
हल्द्वानी, जिला नैनीताल
उत्तराखंड
9411913230

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

राम नाम की लूट है

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। ये कोई कबीरदास का दोहा नहीं, बल्कि एक दुकान के ऊपर लगे एक बोर्ड की कुछ पंचलाइनें हैं। यहां पर राम का नाम खरीदने की होड़ मची है। लोग थैलों और अपनी कारों में राम का नाम भर-भर कर ले जा रहे हैं। सभी प्रसन्न हैं। दुकान के आगे मेला लगा हुआ है। लोग जयश्रीराम का नारा लगाकर एक दूसरे को धक्का मारने में लगे हैं। जब कुछ ग्राहकों से उनकी खरीददारी करने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कुछ इस तरह से जवाब दिया-रामलीला के कलाकार-मैं राम का नाम इसलिए खरीदने आया हूं क्योंकि राम के नाम की आड़ में मैं एक रामलीला कलाकार बनना चाहता हूं। आजकल रामलीला का कलाकार बनने में फायदा है। रामलीला के समय अच्छा खासा चंदा डकारने को मिल जाता है, उसके बाद राजनीति में भी आने का स्कोप रहता है। क्योंकि आजकल अभिनेता और अभिनेत्रियों को आसानी से किसी भी पार्टी का टिकट मिल रहा है। हम भी कलाकार हैं इसलिए राम नाम के सहारे हमारे जीवन की नइ्या पार लग सकती है। मैं तो जी भरकर राम का नाम खरीद रहा हूं।राम भजो पार्टी के नेता-जैसा कि आप लोग जानते ही हैं हमारी पार्टी का नाम ही यहां खरीददारी करने के बाद रखा गया था। भगवान राम के नाम के प्रताप से हम पांच सालों तक केंद्र में टिके रहे। लोगों ने भी हमें जमकर खाने दिया। हम राम का नाम लेकर जनता को लूटते रहे इंडिया साइन का नारा लगाते रहे। जनता को अयोध्या में राम मंदिर बनवाने का झांसा देते रहे, जनता भी मस्त रही। लेकिन बीते कुछ सालों में राम नाम खत्म हो जाने की वजह से पार्टी कोई चुनाव जीत नहीं सकी। सत्ता का सुख क्या होता है, ये भगवान राम ही जान सकते हैं। ये सब विरोधी पार्टी की चाल थी जिसने हमें अब तक राम नाम का फायदा उठाने नहीं दिया। अब अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद कुछ उम्मीद जगी है इसलिए हमें राम के नाम की बहुत जरूरत है।धर्माचार्य-जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम। अर्थात चाहे नाम राम का हो या कृष्ण का दोनों ही फायदे देते हैं। सतसंग में बिन राम नाम लिए भीड़ एकत्र न होवे। भीड़ एकत्र हो जावे तो बिन राम नाम लिए चढ़ावा बढ़िया न आवे। राम नाम का चोला ओढ़े बगैर टेªन के किराये में छूट न मिले, भक्तगण पांव न छुएं, भोजन न करवावें, मुफ्त की रोटियां न तोड़ पावें। राम का नाम लेकर कहीं पर भी मंदिर बनवा लें, चाहे वो सड़क किनारे हो या सड़क के बीच। राम के नाम पर कण-कण है। इसलिए जिसके पास राम का नाम है वो सबसे धनी और गौरवशाली है। इसलिए बोलो जयश्रीराम।

भाई बोले तो...

दोस्त ने कहा-मेरा कोई भाई नहीं है।
मैने कहा आप किस प्रकार के भाई की बात कर रहे है ।
दोस्त हॅसा और बोला-अरे भाई मेरा मतलब सगे भाई से है। जैसे राम का भाई ल़क्षमण,युधिष्ठिर के भाई अर्जुन,भीम।
मैने कहा-अच्छा है तुम्हारा कोई भाई नहीं है,आजकल कलयुग में ऐसे भाई होते कहॉ हैं। अगर ऐसे भाई होते भी है तो बचपन में कुंभ के मेले में बिछुड़ जाते हैं या फिर अपने भाई की प्रेमिका से ही प्रेम कर बैठते हैं।
दोस्त बोला-तुम पर तो लगता है कि फिल्मों का बहुत प्रभाव है इसलिए तुम ऐसी बातें कर रहे हो। हकीकत में भाई बहुत अच्छे होते हैं और अपने बड़े भाई की मदद करते हैैं। देखों राम और लक्षमण दोनों भाईयों में कितना प्रेम था। अपने भाई के लिए लक्षमण ने भी राज्य के सारे सुख छोड़ दिए और राम के साथ जंगल में भटकने चले गए। उनके भाई भरत में भी अपार प्रेम भरा था। उनके भृतत्व प्रेम की तो आज भी कसमें खाई जाती हैं। मैंने कहा-तुम उसी युग के रावण-विभीड्ढण और सुग्रीव-बाली के प्रेम को क्यों भूलते हो।
दोस्त बोला-आप तो हर बात को अन्यथा ही ले लेते हैं।
उनकी बात कुछ और थी,आजकल चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं।
मैंने-समझाया गलतफहमी में मत रहो आजकल के कलयुगी भाई पिता के मरने के तुरंत बटंवारा मांगते हैं। अब मुंबई में धीरू भाई अंबानी के दोनों सुपुत्रों का ही उदाहरण ले लो। जिन्हांेने बटंवारे को लेकर कई महीनों तक देष के अखबारों को गर्म रखा।
दोस्त कुछ देर षंात रहने के बाद बोला-तो आपको क्या लगता है कि भाईयों से बचकर रहना चाहिए। इस बात पर मेरा ध्यान नहीं गया।
मैंने कहा-अरे मुंबई में तो भाई खतरनाक प्राणी होता है। वहां तो खुले आम भाई कहना भी मना है। भाई के नाम से लोग थर-थर कांपते हैं।
दोस्त घबराया और पूछा-क्यों?ऐसा क्या होता है। मुंबई के भाईयों में।
मेैंने कहा-भाई बोले तो मुंबई का डान। जो सुपारी लेकर किसी का मर्डर कर देता है। हमें दाउद और अबू सलेम को नहीं भूलना चाहिए।
दोस्त बोला-लेकिन फिर भी भाई अच्छे होते हैं और मदद भी करते हैं। अगर घर का कोई एक सदस्य मंत्री बन जाएं तो पूरे घर के वारे-न्यारे हो जाते हैं। मैंने कहा-ऐसा क्यों बोलते हो। मंत्रियों में तो सबसे ज्यादा लफड़े हैं। अब राज और उद्धव ठाकरे को ही देख लो। एक दूसरे को गिराने में लगे हैं। प्रमोद महाजन का किस्सा तो भूलने योग्य नहीं है। भाई के चक्कर में उन्हें अपनेें प्राण ही गंवाने पड़े। दोस्त ने मुझसे फिर सिफारिष करते हुए कहा-कुछ भी हो फिल्मों में अभी भी भातृत्व प्रेम बचा है जैसे राम,बलराम,अमर,अकबर और एंथोनी,जयकिषन,चल मेरे भाई, आदि फिल्मों को ही देख लो।
मैने फिर समझाया-अगर एक डान और दूसरा भाई पुलिस ऑफिसर बनता है तो वह तुरंत घर पहंुचता है और पुलिस फाइल दिखाते हुए कहता है,भाई तुम साइन करते हो या नहीं।
डॉन भाई भी कम नहीं रहता वह भी अपने पैसों का रोब झाड़ते हुए कहता है, आज मेरे पास बंगला है,बैंक बैंलेस है,नौकर चाकर हैं,क्या है तुम्हारे पास।
दोस्त घबरा गया और बोला-अब मुझे डर लग रहा है। अच्छा हुआ मेरा का्रेई भाई नहीं,नहीं तो पता नहीं आज मैं आज जिंदा होता भी या नहीं।

गौरव त्रिपाठी

बुधवार, 23 जून 2010

gaurav tripathi

चिरन की चैखड़ी
पहले चिरन देवी पुलिस में थी। इसलिए होली और दिवाली पर हफ्ता लेने की आदत थी। अब हाथ की खुजली मिटाने का एक ही तरीका बचा था- मुहल्ले में स्टार पान की भंडार की दुकान पर चैखड़ी का। चिरन देवी चैखड़ी लगाकर लोगों के विवादों का निपटारा करतीं और लगे हाथ जेब गरम भी हो जाती।
इस बार होली पर फिर से चिरन की चैखड़ी लगी। चैखड़ी में एक पक्ष भगवा रंग तो दूसरा तिरंगा रंग पोते हुए पहुंचा। दोनों पक्ष एक ही बात पर अड़े थे, मुंबई हमारी है.... हमारी है।
शोर गुल सुन चिरन देवी को गुस्सा आ गया और पुलिसिया आवाज में दहाड़ीं- अबे चुप बे। ई फैसला हम करूंगी कि मुंबई किसकी है। ऐ गजोधर दोनों पार्टियों को अलग-अलग कर तो जरा। पूरी मुंबई को खरीद लिया है का। अबे ओ भगवाधारी सबूत दिखा तो बे।
सबूत का नाम सुन भगवाधारी पक्ष और बौखला गया। इतने में भगवा में लाल रंग घोलकर लगाए जांबांज ठोकरे नारा लगाते हुए आ गए- मैं अपनी मुंबई किसी को नहीं दूंगा, किसी को नहीं दूंगा.....। ठोकरे बोले-सदियों से मुंबई मराठी मानुषों की है। इस बार तो सबको बाहर निकालकर रहेंगे। इतने में तीन रंगों में पुता पक्ष तमतमाया- अरे कैसे निकालकर रहोगे। हमें तो विकास करना है। लड़ाई अब तू-तू मैं-मैं की जगह गाली गलौच तक जा पहुंची। भगवा रंग वाले बोले-विकास करना है तो अपने क्षेत्र का करोे जाकर। यहां के पीछे क्यों पड़े हो? दूसरे पक्ष ने अपनी आस्तीने ऊपर कीं-अपने क्षेत्र का विकास किया है आज तक हमने जो अब करेंगे। वो तो हमे अपनी पार्टी का विकास करना है। तुम्हे तो खाली यहीं शासन चलाना है, हमें तो पूरे देश में झंडे गाड़ने हैं। जांबांज ने थोड़ा टाॅपिक चेंज किया और अपनी उपलब्धि बताई-मराठियों ने बंबई को मुंबई बनाया। तुमने क्या किया? तीन रंग वाले अब तमतमाए- तुमने कैसे मुंबई बनाई। मुंबई तो सबकी है दो बार से हम राज कर रहे हैं। तो फिर कैसे? भगवाधारी पक्ष बोला-वो तो हमारे घर में कलह हो गई नहीं तो मुंबई पर तो हमारा ही राज था। तुम्हारे शासन में तो मुंबई में पाकिस्तानी आकर हमला कर गए। हमारे समय में तो हम ही इतने हमले कर देते थे कि बाहरी लोगों को चांस ही नहीं मिल पाता था।
दोनों पक्षों के बीच झगड़ा बढ़ता देख बेलन (क्योंकि पुलिस का डंडा नौकरी छूटने के साथ ही जब्त हो गया था, लेकिन उन्हें कुछ हाथ में लेकर चलने की आदत थी) टेबल पर जोर से मारते हुए चिरन देवी चिल्लाईं- ऐ बंद कर बे चिल्लम चिल्ली। और तू भगवाधारी! अरे क्या जरूरत पड़ी तुझे अभी ये मुद्दा उठाने की। इतने दिन से सारे देश के लोग रह रहे वहां पे। अमिताभ बच्चन और शाहरूख खान को अभी निकालने की क्या सूझी। इस बार जांबांज ठाकरे और भगवाई दोनों बोले- मुद्दा तो उठाना ही पड़ेगा मैडम। विधानसभा चुनाव तो इन तीन रंग वालों ने जीत लिया। अब पालिका चुनाव तो जीतना ही पड़ेगा। वैसे भी हमारी हालत बहुत बदतर हो गई है, कोई दूसरा मुद्दा तो बचा ही नहीं है। खाने-पीने के लाले तक पड़ गए है। गुस्से में आकर मुंह से कुछ उल्टा सीधा निकल जाता है। अब वो चाहे अमिताभ बच्चन के बारे में हो या शाहरूख खान पर टिप्पणी। आप ही फैसला करें।
असली बात जानकर चिरन देवी ने अपनी टांगें बगल वाली कुर्सी पर लंबी कीं-मतलब यो बात खाने-पीने की है। खाना पीना तो मिल बांटकर चाहिए। और तू तीन रंगों वालों क्यों ना खाने देता इनको।
चिरन की चैखड़ी यह फैसला सुनाती है कि दोनों पक्षों के लोग मिल बांटकर खाओ। जनता को इन सब चीजों से कोई मतलब ना है। हां थोड़ा-थोड़ा इन मीडिया वालों को भी खिलाते रहो।
फैसला सुनकर दोनों पक्ष संतुष्ट हो गए। उन्होंने चिरन देवी को उपहार भेंट किए और होली पर हुड़दंग मचाने लगे।
बुरा मान भी लो, तो होली है।
गौरव त्रिपाठी
फोन-9411913230

गुरुवार, 17 जून 2010

garmi

गर्मी में गुंडागर्दी
-गौरव त्रिपाठी
गर्मी में लोगों के साथ संपादक को भी चैन नहीं है। जहां लोग घर से निकलने में डर रहे हैं वहीं संपादक ने गुंडों पर स्पेशल रिर्पोटिंग करने के लिए भेज दिया। एक तो गर्मी ऊपर से गुंडे। अब तो भगवान ही मालिक। खैर जैसे-तैसे शहर के एक नामचीन गुंडे के पास इंटरव्यू लेने पहुंचा। आफिस के बाहर बोर्ड लगा था। जिस पर लिखा था-अखिल भारतीय गुंडा सोसायटी, अध्यक्षः मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले। अंदर घुसते ही बायीं तरफ दीवार पर एक और बोर्ड लगा था जिस पर रेट लिस्ट लिखी थी-

अपराध कराने के रेट
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डराने-धमकाने के दस हजार
हाथ-पैर तुड़वाने के चालीस हजार
धरना प्रदर्शन कराने के अस्सी हजार
अपहरण कराने के एक लाख
मर्डर कराने के दो लाख
तीन मर्डर कराने के पांच लाख
दंगा कराने के दस लाख
नोट-सारा माल कैश लिया जाएगा, रुपये एक सीरिज में नहीं होने चाहिए। गर्मी में धरना प्रदर्शन कराने के लिए पहले समय ले लें। 15 जून से पहले तक काम कराने पर विशेष छूट। एडवांस बुकिंग जारी है।
रेट लिस्ट पढ़ते-पढ़ते किसी ने पीछे से धक्का मारकर सीधे गुंडा सोसायटी के अध्यक्ष के पास ही पहुंचा दिया। मुन्ना भाई सामने कुर्सी पर बैठे थे और एक हाथ की अंगूली में रिवाल्वर घुमा-घुमाकर फोन पर किसी को धमकी दे रहे थे। मुझे देखते ही मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले ने फोन रख अपनी मुंबइया भाषा में बोलना शुरू किया-क्या बे कहां से टपका रे तू ? क्या काम है बोल, रेट लिस्ट पढ़ लिया ना। सारा पैसा अभिच मांगता है। मैंने घबराते हुए समझाने की कोशिश की-नहीं भाई मैं बस बेसहारा टाइम का रिपोर्टर हूं और आपका इंटरव्यू लेने आया था। रिपोर्टर सुनते ही मुन्ना भाई भड़क गए-अबे अंदर किसने आने दिया बे इसको। अरे बाहर करो इस कागज कलम वाले को। बड़ी मगज मारी करते हैं रे। इतने में दो सांड टाइप दो गुंडे आकर मुझे उठाकर फेंकने ही लगे थे कि मैंने एक-दो नेताओं का नाम लेकर खुद को बचाया और मुन्ना जी की तारीफ कर इंटरव्यू के लिए पटाया।
मुन्ना भाई बोले-चल जल्दी पूछ, जो कुछ पूछना है। टाइम खोटी मत कर। मैंने अपना पहला सवाल किया-आपने गर्मी में धरना प्रदर्शन के लिए रेट में विशेष छूट क्यों दे रखी है ? मुन्ना बोले-अब देख जिस तरह ठंड आते ही अंडों की डिमांड बढ़ जाती है उसी तरह गर्मी आते ही हम गुंडों की डिमांड बढ़ जाती है। बोले तो गर्मी आते ही बिजली कटौती, पेयजल किल्लत वगैरह वगैरह की समस्या होने लगती है। इसलिए विपक्षी नेताओं को बैठे-बैठे एक मुद्दा मिल जाता है और धरना प्रदर्शन आदि करने के लिए अपुन लोगों के पास भीड़ लग जाती है। पहला जवाब कापी में नोट करने के बाद मैंने दूसरा सवाल किया-दंगा कराने का समय कौन सा उचित रहता है। भाई ने अपना चाकू मेरी नाक के चारों तरफ घुमाते हुए कहा-दंगे का तो ऐसा कोई फिक्स टाइम नहीं है लेकिन जब चुनाव के समय दो धर्मों के त्योहार एक साथ पड़ जाते हैं या एक शहर में दो धर्मों के बराबर-बराबर हों तो पासिबिलिटी बढ़ जाती है। नेता कनफ्यूजन में रहता है कि किस धर्म वाले लोगों का साथ दें। इसलिए दंगा करा देता है और बाद में जिसमें सबसे ज्यादा लोग आगे आते हैं उन्हीं के साथ हो लेते हैं। कभी-कभी जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाने के लिए भी दंगे कराए जाते हैं। जोश में आए मुन्ना भाई के चाकू के वार से बचते हुए मैंने अपना अगला सवाल किया-लोग आपके पास अपहरण और हत्या कराने के लिए अधिकतर किन बातों को लेकर आते हैं। मर्डर के लिए बोले तो जर, जोरू और जमीन को लेकर ही लोग आते हैं। किसी को जायदाद चाहिए होती है या कोई अपनी बीवी को रास्ते से हटाकर दूसरी शादी करना चाहता हो या फिर जमीन हड़पने को लेकर विवाद हो सकता है। सबसे ज्यादा ये प्रेमी छोकरे लोग परेशान करते हैं। ये लड़की के चक्कर में इतने पागल हो जाते हैं कि खुद ही मर्डर कर देते हैं। इससे अपन लोगों के धंधे को नुकसान पहुंचता है। मैंने तीसरे सवाल के लिए जैसे ही मुंह खोला कि मुन्ना भाई ने अपनी रिवाल्वर घुसेड़ दी-बहुत बक-बक कर ली बे। अब आ ही गया है अपने अखबार में अपुन लोगों का एक विज्ञापन छापो। रिवाल्वर हटते ही मेरे मुंह से निकल गया-गुंडे का विज्ञापन। यह सुनते मुन्ना भाई दोबारा भड़क गए इस बार रिवाल्वर तानते मेरे माथे पर तानते हुए हड़काया-अबे गुंडा किसको बोला बे। अपुन गंुडा नहीं अपुन कर्मी है बे। मैंने कहा-कर्मी। हां अपराध कर्मी-मुन्ना जी ने क्लियर किया। चुपचाप लिख जो बोला जा रहा है- गबरू युवा लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। अब तक नौकरी नहीं मिली तो घबराइये नहीं हमारी अखिल भारतीय गंुडा सोसायटी ज्वाइन कीजिए। बंदूक, रिवाल्वर, तमंचा रखने वाले को प्राथमिकता दी जाएगी। एक-दो घंटे में कमाएं लाखों रुपये। संपर्क करें- अखिल भारतीय गुंडा सोसायटी के अध्यक्ष मुन्ना भाई तोड़फोड़ वाले से।
एक घंटे के बाद सर से रिवाल्वर हटते ही मैंने सीधे आफिस की तरफ दौड़ लगा दी। संपादक जी को इंटरव्यू और विज्ञापन देकर राहत की सांस ली।