सोमवार, 19 दिसंबर 2016


~फ्यासबुक में ग्यानैकि ढूँनखोज~

~फ्यासबुक में ग्यानैकि ढूँनखोज~
  फ्यासबुक आज मनखी जीवनक् खास अंग छ। नानतिन आपण इस्कूली किताब पढौ चाहे न पढौ, पैं ब्याव तलक पाँच छै बेरा फ्यासबुकाक् अपडेट क्वे लै हालतन् में पढी ल्हिनी। च्याल् यकैं चेलियांन् कैं पटूँण हुणि भौतै मधतगार माननी। अगर क्वे चेलिल मितरामी अनुरोध मंजूर {फ्रैण्ड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट} करि हाली त समझो आदुक आंदोलन पुर हैगो। फ्यासबुकल लोगनाक भितेर लुकी कारीगरी लै भ्यार निकाई है। यैकै वील कतू लोग फोटूग्राफर त कतू लोग लेखक,साहित्यकार बणि गई। जैकि लै दिवाल {फेसबुक वॉल} में देखछा कविता,शायरी और दरशन देखण हूँ मिलना। लाईक और कमिंट पाणाक् लिजी लोग के नि करनै? अस्पताव में खून दिण बखत,शहरैकि साप-सफाई करण बखत, फोटुक खैंचूंनई। जबरदस्ती पैंस फुकिबेर घूमण {हॉलीडे} हूँ जानई। आफी आपणि मजाग बणूनी वालि फोटुक लै पोस्ट करनई। फ्यासबुक आब राजनीति में लै भौतै खास भूमिका निभूंण लागि रौ। यमें पार्टियों क गठन तलक है जानई। यैल मुख्यमंत्री बणीं जै सकनौ। अरविंद केजरीवाल ज्यू यैक एक भाल् उदाहरण छन्। उनन् कैंईं देखिबेर और दल लै फ्यासबुक में आपण दांव अजमूण लाग रई। पैं उनार पचाङ वी पुराण छन्। जैक वील उ धार्मिक भावना भङकै बेर कतू झगङ-फसाद {दंग} करूँण में कामयाब हई और हाव् कैं उनून आपणि तरबै हूँ मोङौ। यैकै लिजी यैक एक नाम फसाद बुक लै धरि दी गो। मल्लब 'करौ क्वे भरौ क्वे'। पैली यौ केवल अमीरोंकै अमीरीक निशाण छी। आब सब मुबाईलन् में इंटरनेटैकि क्रांतील यकैं भौतै गरीब-गुरीबन् तलक लै पुजा हालौ। इनन् में रिक्शवाल् ,झाङ् प्वछ वाल् नौकर-नौकरानी,भिकारि सबै शामिल छन्। लोगन् कैं देखि-देखिबेर, यौ लै आपण मनाक भावन कैं कविताओंल सामणी धरण फै गई।
  याँ कुछेक लोग-बागनैकि दिवाल में करी पोस्टोंकि जानकारी दिण ठिक रौलि...
सबन् हैं पैली रिक्शवालाक् दिवाल में लेखी शायरी--
* रत्तै-रत्तै द्वी पैग लगैबेर रिक्श चलूण में बङ माज् ऊँ,
पैं जब बैठें पछिल मोटि-मोटि सवारी, सारै दम जानै रूँ।
एक नौकराणिक खात् में लेखी छी...
* आजकल हमरि मीम सैब पार्टियों में बिजी छ।
तबै त सैप कैं शुकून, म्यर काम ईजी छ।।
यै मेंई आई यक कमिंट..
हमूंन त रोज करण भै चूल्हा चौक।
पैं सैप कैं पटूंणक्,यौ छ भल मौक।।
   भारताक् भिकारि रोजै बदलावकारी रई छन्। उनरी एक पोस्ट....
* चौराई में बैठी-बैठी,कमर टेढि हैगै।
पैं द्वी रूपैं दिण में,यौ अमीरोंकि आम् मरिगै।
{खबरदार-यत्ती मकोटै आमक् जिगर छ हाँ}
यैई में आई एक हुश्यार तितिर किस्मक भिकारिक कमिंट..
* यौ अमीरोंक् खिलाप,एक आंदोलन छेङन छ।
दस रूपैं हैबेर कम,आब कैलै न ल्हिन छ।।
  मलियाक उदाहरणोंल हम समजि सकनु कि यौ फ्यासबुक या फसकबुक दूहारों कैं जलूंणी,आपण उल्लू सिद करणी और आपणी भङांस निकालनी बुक छ।
-मूल रचना- गाौरव ‌त्रिपाठी, हल्‍द्वानी
~अनुवादक-राजेंद्र ढैला,काठगोदाम।

मंगलवार, 29 नवंबर 2016

-गीताक संशोधित उपदेश-

-गीताक संशोधित उपदेश-
भक्तोंक् बार-बार तिख् सवालोंल दुखी पोंगा पंडितोंल यो बार भागवत गीता कें ई बदलणक फैसाल् करि ल्हे। यैक लिजी पोंगा पंडितोंकि ठुल्ली सभा बुलाई गै। तय तारीकाक् दिन देशाक् सबै पोंगा पंडित-जोगी बाबा आदि पुजी।
सभाकि अध्यक्षता करनेर निराशाराम बापूल सबन् हैं पैली बुलाण शुरू करौ-संत जनौ ! बखत कैकै नि हुन। बदलावै जीवन छ,यै लिजी बखताक् अनुसार सब चीज बदलते रूण चैंनी। यौ भौत दुखाक् दगाङ कूँण पङना कि सन् १९५० में बणीं संविधान में लै जाँ कतू बार सुधार {संशोधन} हैगो। वाईं लोगों कें धर्मक् पाठ पढूनी वालि भागवत गीता में एक बारलै सुधार न हैरै। भगवान श्रीकृष्णल अर्जुन कें जो उपदेश दी उ महाभारतैकि लङै करण हैं पैलीयाक छी। पांडवन् कें लङैंक् बाद के करण चैंछ? यौ भगवान श्रीकृष्णल बताए न्हाँ,यैकै वील पांडवन् कें मोक्ष पाणक् सई बाट् न मिल। आब कलियुग में भगतोंकि तकलीफ बढि ग्यै। दिन पर दिन भगत उल्ट-सुल्ट सवाल करनई, जनर जवाब गीता में घंटों ढुणन् पर लै न मिलन्। अदालतों में लै खाली गीता में हात धरैबेर कसम खवै ल्ही जैं। यौ न देखी जान् कि गीताक उपदेश कतुक् पुराण है गई। यमें सुधाराक् लिजी हुकुम दी जाओ,यै हैं भल हमन् यौ काम हुंणी आब खुदै अघिल ऊण होल्। गीता में सुधाराक लिजी सबनाक् बिचार आमंत्रित छन्,यतुक कै बेर निराशाराम ज्यू बैठ गई।
आब् पोंगा पंडित महासभाक अध्यक्ष अनियमित्तानंद स्वामी ठाङ भई-हे साधू ! गीता में श्री कृष्णल कै राखौ करम करौ फलकि ईछ्या न करौ। यौ बात ऐलाक परिवेश में ठिक् न बैठनि। करम हम करूँ और फल दुहर खाओ,यौ उपदेश जकें सुणैं दियो उ साधु-बाबाओंक पास दुहरीबारा लौटीबेर न ऊँन। अच्यालन् उसिक लै लोग बिना काम करियै फलकि ईछ्या धरनीं। सबै जाणी लॉटरीक नंबर पुछण हूँ ऊनई। बस एक्कै बार लागि जाओ त पुर जिंदगी भरीक् अरामै-अराम। यै लिजी यौ उपदेश कें तुरंतै हटूँण होल्।
यैक बाद दुहार संत बाबा कामदेवल हात जोङिबेर आपण बिचार धरण शुरू करी-संतजनौ वेदपुराणों कें पढिबेर,हम लोगन् थैं साँचि बुलाण हूँ कूँनू। पैं यस आब संभव न्हाँ। कलियुग में झुटि बुलाण आम आदिमकि मजबूरी न बल्कि जरवत लै छ। औपिस में अगर आदिम झुटि न बुलाओ कि वीकि स्यैणी बीमार हैरै, त उकें छुट्टी कसिक मिललि? अदालत में वकील झुटि गभाई या सबूत पेश न करलौ, त उ मुकर्दम कसिक जीतल? डॉक्टर अगर मामूली बुखार कें टायफैट बतैबेर मरीज धैं पैंस न ऐंठौल त वीकि दुकानदारी कसिक चलैलि? नेता अगर जनता थैं झुट वैद न करलौ त उ चुनाव कसिक जीतल? क्वे च्यल् अगर क्वे चेली हुणी झुटि न बुलालौ त उ आपणि चार्-चार् दगङू चेलियान् {गर्लफ्रेंडन्} कें कसिक संभालल्? यै लिजी यौ कथन कें बंद करण, मनखीक भलाई में छ।
  यौ बार सबन् हैं ठुल बाबा श्री श्री २०१० हवाई जहाजल् प्रवचन शुरु करौ-भगत जनौ .......। चारों तरबटी महात्माओं कें देखिबेर,बाबा तुरंत गलती सुदारते हुए दुहरीबेरा बुलाणी-छिमा करिया श्रीमन् ! दिनभरी एकसा प्रवचन दिनै-दिनै आदत जसि बणिगै। खैर हम लोग भारतवासियों कें आपस में भाई-बैणी बतूंनै रै गयां और महाराष्ट्र में राजठाकरे मराठी मनख्योंक् राज बतैबेर सारी प्रसिद्धि ल्हिनगो। हमन् थैं प्रवचन सुणन हुँ बस बुणियै स्यैणी ऊँनी। उथकै एकता कपूरल् घर में क्लेश और जाल साजीक नाटक दिखै-दिखैबेर सबै ज्वान स्यैणियों कें आपणि तरफ खैंचि हालौ। हम लोगन् कें आपण भितेर सुख-शान्ति ढुण नकै संदेश दिनै रयाँ। आब कदम उठूणै पङल, भौत हैगै भाई-बंदीकि बात। आत्म संतुष्टीकि पुंतुरि, सहनशीलताकि सीमा।
  सभा खतम हुणाक् बाद गीता में सुधार करण हूँ इग्यार पोंगा पंडितोंकि एक टीमक गठन करी गो। टीमल् पाँच सालोंकि खूब मिहनताक् बाद "गीताक उपदेशों में सुधार" नामक नई ग्रंथ बजार में उतारौ,ग्रंथाक कुछेक महत्वपूर्ण अंश याँ दी जानई....
० काम करिबेर क्वे राज् न बणिरै,यै लिजी फलकि ईछ्या सबकुछ छ। फल पाणाक् लिजी अगर कै कें घूस दिण / ल्हिण या घोटाल करण पङौ त चुकण न चैंन।
० झुटि बुलाण क्वे पाप न्हाँ बल्कि काम आसान करणैकि एक तरकीब छ। अगर सतयुक में राजा हरीशचंद्र झुटि बुलै दिना त जिंदगी भरि राजपाठक् सुख भोगन् और मरण हबेर पैली एकबेरा गंगा नै {स्नान} करि ऊँना त सब पाप लै ध्वेई जान्।
० पङोसीक सुख देखिबेर जलण सिखो और उकें खड्डन् धक्यूंनैकि खूब कोशिश करो। जिंदगी में अगर तुम सुखी न्हाँता त तुमर पङोसी कें सुखी रूणक क्वे हक न्हाँ।
० दुहारोंकि भलाई करण आम मनखीक काम न्हाँ,यै लिजी भलाईक काम भगवानाक् ऊपर छोडि दिण चैं। मनखी कें क्वे लै काम में आपणै लोभ देखण चैं।
० क्वे लै मनखीक दगङ तबै तक दिण चैं जब तलक उ बटी काम निकवना,काम निकवनाक् बाद झट्ट आपण रंग बुदई ल्हिण चैं।
० जसिक पुराणि गीता में भगवान कृष्णल् कै राखौ दुश्मण सिर्फ दुश्मण हूँ,चाहे उ आपण सांकै किलै न्हाँ। आब् नई गीता में दुश्मणोंकि केर और जादा बढै हालै। आब अगर जमीन जायदात कें ल्हीबेर मैं-बाप या स्यैणी लै बाट् में जिटक् बणिबेर किलै न आओ,उनन् केंलै बाट् बटी हटूंण में न चुकण चैंन।
  जागैकि कमी हुणाक् कारण सबै उपदेश न लिखी जै सकनै,यै लिजी पुरि जानकारी ल्हिण तैं संशोधित गीताक उपदेश बजार बटी खरिदिबेर पढिया।
.....धन्यवाद...
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मूल रचना- गाौरव ‌त्रिपाठी, हल्‍द्वानी
अनुवादक- राजेंद्र ढैला,काठगोदाम।

बुधवार, 9 नवंबर 2016

फेसबुक पर शोध

व्यंग्य-गौरव त्रिपाठी, हल्द्वानी, उत्तराखंड, 9411913230

फेसबुक आज मानव जीवन का अभिन्न अंग है। बच्चे अपने कोर्स की बुक पढ़ें या न पढ़ें लेकिन शाम तक पांच-छह बार फेसबुक पर अपडेट हर हाल में पढ़ लेते हैं। लड़के इसे लड़कियां पटाने में काफी मददगार मानते हैं। अगर किसी लड़की ने फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली तो समझो आधी मुहिम पूरी हो गई। फेसबुक ने लोगों की सृजनात्मक क्षमता भी बढ़ाई है। इसके कारण कई फोटोग्राफर तो कई लोग साहित्यकार बन गए। जिसकी वॉल पर देखो कविताएं, शायरी और दर्शन नजर आता है। लाइक और कमेंट्स पाने के लिए लोग क्या नहीं करते। रक्तदान, नगर की सफाई करते हुए फोटो खिंचाते हैं, जबरन पैसा खर्च करके हॉलीडे मनाने जाते हैं। खुद का मजाक उड़ाने वाले चित्र पोस्ट करते हैं। फेसबुक अब राजनीति में भी मुख्य भूमिका निभा रहा है। इस पर पार्टियों के गठन तक हो जाते हैं। इससे सीएम भी बना जा सकता है। अरविंद केजरीवाल इसका उदाहरण हैं। उनको देख अन्य दल भी फेसबुक पर अपने दांव आजमाने लगे हैं। लेकिन उनके फंडे वही पुराने हैं। जिससे वे धार्मिक भावनाएं भड़काकर कई दंगे कराने में कामयाब हुए और हवा अपनी ओर मोड़ी। इससे इसका नाम फसाद बुक तक रख दिया गया। यानी करे कोई भरे कोई। पहले ये सिर्फ अमीरों को स्ट्ेटस सिंबल था। अब हर मोबाइल पर इंटरनेट क्रांति ने इसे अत्यंत गरीब तबके तक भी पहुंचा दिया है। इसमें रिक्शेवाले, नौकरानियां, भिखारी आदि तक शामिल हैं। लोगों को देख-देखकर ये भी अपने मन की भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यहां कुछ लोगों के वॉल पर किए गए पोस्ट की जानकारी देना उचित होगा। सबसे पहले रिक्शेवाले के वॉल पर लिखी शायरी-


सुबह-सुबह दो पैग लगाकर रिक्शा चलाने में बड़ा मजा आता है।
लेकिन पीछे जब बैठती हैं मोटी-मोटी सवारियां तो दम निकल जाता है।


एक नौकरानी के अकाउंट पर लिखा था-
आजकल मेम साहब किटी पार्टियों में बिजी हैं,
इसलिए साहब को सुकून और मेरा काम ईजी है।
इस पर आया एक कमेंट -
हमें तो रोज करना चूल्हा चौका है।
पर साहब को पटाने का ये अच्छा मौका है।


भारत के भिखारी हमेशा से क्रांतिकारी रहे हैं। उनका एक पोस्ट-
चौराहे पर बैठे-बैठे टेढ़ी कमर हो जाती है।
पर दो रूपये देने में इन अमीरों की नानी मर जाती है।
इस पर आया एक प्रबुद्ध भिखारी का कमेंट-
इन अमीरों के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ना है।
दस रूपये से कम अब किसी को नहीं लेना है।


उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि फेसबुक दूसरों को जलाने, अपना उल्लू सीधा करने और भड़ास निकालने की बुक है।