बुधवार, 9 नवंबर 2016

फेसबुक पर शोध

व्यंग्य-गौरव त्रिपाठी, हल्द्वानी, उत्तराखंड, 9411913230

फेसबुक आज मानव जीवन का अभिन्न अंग है। बच्चे अपने कोर्स की बुक पढ़ें या न पढ़ें लेकिन शाम तक पांच-छह बार फेसबुक पर अपडेट हर हाल में पढ़ लेते हैं। लड़के इसे लड़कियां पटाने में काफी मददगार मानते हैं। अगर किसी लड़की ने फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली तो समझो आधी मुहिम पूरी हो गई। फेसबुक ने लोगों की सृजनात्मक क्षमता भी बढ़ाई है। इसके कारण कई फोटोग्राफर तो कई लोग साहित्यकार बन गए। जिसकी वॉल पर देखो कविताएं, शायरी और दर्शन नजर आता है। लाइक और कमेंट्स पाने के लिए लोग क्या नहीं करते। रक्तदान, नगर की सफाई करते हुए फोटो खिंचाते हैं, जबरन पैसा खर्च करके हॉलीडे मनाने जाते हैं। खुद का मजाक उड़ाने वाले चित्र पोस्ट करते हैं। फेसबुक अब राजनीति में भी मुख्य भूमिका निभा रहा है। इस पर पार्टियों के गठन तक हो जाते हैं। इससे सीएम भी बना जा सकता है। अरविंद केजरीवाल इसका उदाहरण हैं। उनको देख अन्य दल भी फेसबुक पर अपने दांव आजमाने लगे हैं। लेकिन उनके फंडे वही पुराने हैं। जिससे वे धार्मिक भावनाएं भड़काकर कई दंगे कराने में कामयाब हुए और हवा अपनी ओर मोड़ी। इससे इसका नाम फसाद बुक तक रख दिया गया। यानी करे कोई भरे कोई। पहले ये सिर्फ अमीरों को स्ट्ेटस सिंबल था। अब हर मोबाइल पर इंटरनेट क्रांति ने इसे अत्यंत गरीब तबके तक भी पहुंचा दिया है। इसमें रिक्शेवाले, नौकरानियां, भिखारी आदि तक शामिल हैं। लोगों को देख-देखकर ये भी अपने मन की भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त करते हैं। यहां कुछ लोगों के वॉल पर किए गए पोस्ट की जानकारी देना उचित होगा। सबसे पहले रिक्शेवाले के वॉल पर लिखी शायरी-


सुबह-सुबह दो पैग लगाकर रिक्शा चलाने में बड़ा मजा आता है।
लेकिन पीछे जब बैठती हैं मोटी-मोटी सवारियां तो दम निकल जाता है।


एक नौकरानी के अकाउंट पर लिखा था-
आजकल मेम साहब किटी पार्टियों में बिजी हैं,
इसलिए साहब को सुकून और मेरा काम ईजी है।
इस पर आया एक कमेंट -
हमें तो रोज करना चूल्हा चौका है।
पर साहब को पटाने का ये अच्छा मौका है।


भारत के भिखारी हमेशा से क्रांतिकारी रहे हैं। उनका एक पोस्ट-
चौराहे पर बैठे-बैठे टेढ़ी कमर हो जाती है।
पर दो रूपये देने में इन अमीरों की नानी मर जाती है।
इस पर आया एक प्रबुद्ध भिखारी का कमेंट-
इन अमीरों के खिलाफ एक आंदोलन छेड़ना है।
दस रूपये से कम अब किसी को नहीं लेना है।


उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि फेसबुक दूसरों को जलाने, अपना उल्लू सीधा करने और भड़ास निकालने की बुक है।

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