बुधवार, 18 जनवरी 2017

पप्पू तो रावण की सेना में जाएगा

पप्पू तो रावण की सेना में जाएगा
रामलीला का सीजन आते ही चंदा शुरू, धंधा शुरू और कटना बंदा शुरू। हमारे शहर में पहले एक रामलीला होती थी, आजकल हर मोहल्ले में होती है। सबकी अलग-अलग रामलीला कमेटी। हर कमेटी का अलग चुनाव। चुनाव के लिए हर साल महाभारत। सुना है कि इस बार रामलीला कमेटी के पूर्व अध्यक्ष ने वर्तमान अध्यक्ष पर चंदे में घोटाले का आरोप लगाकर खूब बवाल किया। वर्तमान अध्यक्ष ने भी पूर्व अध्यक्ष पर अपने समय में घोटाले को पहले देखने की नसीहत दे डाली। दोनों ने एक दूसरे को सरेआम सड़क पर चप्पलों से पीटा। उनसे कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंतकाल पछताएगा, जब पद जाएगा छूट।
 खैर शहर की आठ रामलीलाओं को चंदा देने के बाद एक रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पेटूराम से मैंने कहा-इस बार मेरे बेटे पप्पू को भी रामलीला में कोई पात्र अदा करने देने की कृपा करें। उसने फौरन चंदे की रकम दुगुनी कर दी और दो हजार रूपये की पर्ची काट दी। मैंने संतोष किया-बच्चों में अच्छे संस्कार डालने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा। पेटूराम बोले-पप्पू को राम की सेना में भर्ती करना है या रावण की। मैंने कहा कि राम की सेना ठीक रहेगी मैं बच्चे को संस्कारी बनाना चाहता हूं। पेटूराम फिर बोले-राम की बंदरों वाली सेना अच्छी है। खर्चा भी ज्यादा नहीं होता है। सिर्फ एक लाल रंग का चमकीला कच्छा पहनाना पड़ता है। देखेंगे अगर कोई डंडा बचेगा तो गदा के रूप में उसे भी थमा देंगे। साइंस के अनुसार बंदरों की पूंछ लुप्त हो चुकी है, इसलिए पूंछ का खर्चा बच जाता है। बस जय श्रीराम, जय श्रीराम बोलना है।
  बात चल रही थी कि इतने में पप्पू दरवाजे पर आ गया। सबकुछ सुनकर उसने जिद पकड़ ली कि वो रावण की सेना में भर्ती होगा। पप्पू ने कहा कि मुझे रावण अंकल की तरह काले कोट वाली ड्रेस पहननी है। खाली लाल कच्छा पहनूंगा तो मेरे मोहल्ले वाली गर्लफ्रेंड स्वीटी मुझ पर हंसेगी। पप्पू ने पैर पटकना शुरू किया। मैंने समझाया-बेटा केवल ड्रेस में कुछ नहीं रखा है। चरित्र मुख्य है। तुम्हें राम की तरह बनना है, तभी लोग तुम्हारी इज्जत करेंगे। पप्पू बिदक चुका था-आप तो चाहते हैं कि भगवान राम की तरह आपके कहने पर जंगल चला जाउं और छोटू को आप मेरा वीडियो गेम, खिलौने, साइकिल, कमरा सब सौंप दें। मैंने पप्पू को फिर समझाया-देखो बेटा ऐसा नहीं बोलते, छोटू तुम्हारा भाई है। समाज क्या कहेगा, अखबार में खबर आएगी कि ‘भाई में हुई लड़ाई‘। पप्पू को कुछ सुनना मंजूर नहीं था-अखबार का क्या है। जब रावण के पुतले का साइज छोटा होता है तो कहते हैं महंगाई में घटा रावण का कद। जब साइज बड़ा किया जाता है तो कहते हैं समाज में बुराइयों के साथ रावण का कद बढ़ा। अखबारों वालों को बस तिल का ताड़ बनाना आता है। पप्पू अपनी जिद पर अड़ा था। उधर, पेटूराम दूसरी जगह चंदा मांगने और पहले आपस में तय करने की बात कहकर वहां से चले गए।

-गौरव त्रिपाठी, युवा व्यंग्यकार, हल्द्वानी, उत्तराखंड
9411913230

~टिकटाक लिजी चिट्ठी~

~टिकटाक लिजी चिट्ठी~
चुनावनकि धमक पङते ही राजनैतिक पाल्टीयोंक् सर्वेसर्वा-मुखियान (हाईकमान) धैं टिकट ल्हिणाक् लिजी नेताओंकि होङ मची रै। चुनाव ब्यवस्थापकोंक (प्रभारियों) पास अच्याल टिकट मांगणी वाल् दावेदारोंकि चिट्ठीनक खात् लागि रौ। सबै उननकैं मतकौंण में धन बलल् लागी छन्। इनन में की एक चिट्ठी मैंकें प्रापत भै, जो यौ प्रकारल छ--
माननीय नेता ज्यू
जै भारत
   सुणन में ऊना कि म्यार इलाक बटी चुनाव लङन हूँ, भौतै लोगोंल् तुमार सामणि दावेदारी ठोक राखै, छाङो उनन् कें। तुम त जाणनेरै भया, कि हमर और तुमर रिश्त भौत पुराण छ। आज लै विधानसभा छेत्र में तुम गुंडागर्दीक जो डर देखना हा, वु म्यारै वील छ। उमर चाहे जतुक लै हैगै होलि पैं इलाक में दादागिरी पुरि उसी छ जसि पैली छी। तुमार बाज्यू और मैंन दगाङ-दगाङै पैली अन्याय फिर राजनैतिक दुणी में खुट धरौ। न मालम कतुक खून,बलात्कार,अपहरण,चोरि-चकारी करी। हमेशा थाणन् में शिकैत (रिपोर्ट) लेखी बेर रयी,कभै पुलिस घर तलक न आ सकी। आब त यौ नई-नई नानतिन आगई, जो छ्वाट-म्वाट टूजी-स्पेक्ट्रम,कौमनवेल्थ और काव् धन जास घोटाल लै भलि ढंगल न करि सकनैं। फसि जनई और पाल्टीक नाम बन्नाम करनई। हमार जमान् में त सरकारी डबल कभत खिसिक् बेर जेबन पुजिगो पत्तै न चलनेर भै। मैंकें याद छ भोपाल गैस कांड। कब कांड भौ कभत वारेन एंडरसन देश छोङिबेर सरकारी शानौशौकताक् दगाङ न्हैंगै,लोग आज तलक समजि न सक बलकन गजबजाटै में छन। चलौ खैर छोङो यौ सब बात पुराणी हैगी। सुणन में ऊनौ कि आपूं फिलमी कलाकारन कैं टिकट दिण में भौत चाव देखूनौछा। अगर येसि वालि बात छ त यौ हिसाबल लै मैं टिकटाक लिजी बिलकुल फिट छूँ।
  आल्लै-आल्लै हमार इलाक में जो महाभारतकि लीला शुरू भै,यमें मैंन धृतराष्टक रोल निभा। उसिक धृतराष्टक रोल हमार राजनैतिक जीवन में रोजै रूनेर भै। जनता बचौ या मरौ हम त आँख बंद करि बेर बैठ रूनेर भयां। हमार कौरब रूपी गुंड शहर में लङै करून,लोगन् में फूट डलूण,जातिवाद फैलूण, आदीन में अघिल रूनेर भाय। हम सूनसान कौरब और पांडबनक जुवाक खेल में मनमर्जी अर् अत्याचारों कैं देखनै रूनू। जनता रूपी द्रौपदीक चीरहरण हुनै रूँ और हम आनंद ल्हिनै रूनू। द्रौपदी त पैलियै पांचाली भै,उकैं थ्वाङ लोगोंन आजी नँगङ करि हालौ त यमें म्यर के दोष ! यैक अलावा रामलील में रावणक पाठ मैंकें छोङि क्वे न खेलि सकन्। जो लै चीज म्यार मन ऐजैं,वु चाहे माता सीता हो या गरीब-गुरीबनकि छानि-छुपरी,झोपड़ीन कें तुङवैबेर आप्वीं हथियै ल्हीयूँ। हर बारै कि चार यौ बार लै लोगन कैं रुवाट,कपङ,मकानैकि हौसि दिखै राखै। संतै मुसई और हिंदू भोट मेरि जेब में छन। यैकै वील मैं आंश करूँ कि हर बारैकि चार यौ बार लै तुम मैंकणी टिकट देला।
......चुलबुल पाण्डे
......हुण-हुण दबंग।
मूल रचना-गाौरव ‌त्रिपाठी
अनुवादक-राजेंद्र ढैला