मंगलवार, 6 सितंबर 2011

भूतनी के लिए प्रेत की तलाश

-व्यंग्य,
जैसे-जैसे भूतनी बड़ी हो रही थी वैसे-वैसे उसके चांडाल बाप और डायन मां को चिंता सताने लगी। भूतनी का आए रात रोता हुआ चेहरा चांडाल बाप देख नहीं पा रहा था। पहले उसका चेहरा कितना डरावना लगता था लोग उसे देखते ही सांस लेना भूल जाते थे। वह पहले कितना लोगों का खून चूसा करती थी। अब तो उसका किसी को डराने का मन ही नहीं करता। उसके लंबे-लंबे बाल, बड़े-बड़े दांत, नुकीले नाखून, भयानक आंखे, गठिला बदन किसी साजन (प्रेत) की तलाश में सूखते जा रहे हैं। अपनी बेटी को परेशान देख आखिरकार चांडाल बाप ने उसके लिए एक प्रेत पति ढूंढ़ने का फैसला कर लिया। मृत्यूलोक और भूतलोक का पूरा चक्कर लगाने के बाद दामाद की तलाश में चांडाल बाप अंत में अपने मित्र के पास पहुंचा। लटके हुए मुंह के साथ पहुंचे चांडाल को देख मित्र ने उससे परेशानी का कारण पूछा। इस पर चांडाल ने कबीरदास के अंदाज में आते हुए उत्तर दिया-दामाद जो ढूंढ़न मैं गया प्रेत न मिलया कोई। मित्र के इतनी टेक्नीकल बात न समझ पाने पर चांडाल ने स्पष्ट व्यथा सुनाना शुरू किया-अब क्या बताऊं मेरी बेटी भूतनी दिन-ब-दिन यौवन के दिनों में अंगड़ाई ले रही है। लेकिन अब भूतों में कोई अच्छा वर मिलता ही नहीं है। पहले धरती पर आए दिन पापियों का नाश होता रहता था। इस कारण पृथ्वीलोक से कभी हिरणाकश्यप, कभी रावण, तो कभी महिषासुर आते ही रहते थे। क्या शान थी उस जमाने में भूतलोक की। हमेशा रौनक रहती थी। कोई प्रेत अपनी डरावनी आवाज सुना रहा है तो कोई पिशाच अपने भयानक शरीर से चीखने को मजबूर कर रहा है। लेकिन अब तो धरती से कोई बीस दिन से भूखा मरकर आ रहा है तो कोई सीधा-सादा व्यक्ति अपनी ईमानदारी के कारण। कोई डाक्टर की लापरवाही से मरता है। अधिकतर लोग टेªन दुघर्टना, बस हादसे, प्लेन क्रैस या फिर दंगों में मरकर पहुंचते हैं। ये लोग वहां तो रोते ही रहते हैं, यहां भूत बनकर भी चैन नहीं लेते। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? मित्र ने जानने की कोशिश की। चांडाल बाप ने बात को विस्तार दिया-ये सब धरती पर रहने वाले सत्ताधारी नेताओं की वजह से हो रहा है। ये नेता खुद तो मरते नहीं साथ में किसी पापी को भी मरने नहीं देते। कोर्ट हत्यारों को फांसी की सजा सुनाती है और ये अपने वोट बैंक के चक्कर में दया याचना मांगने लगते हैं। संसद में हमले के आरोपी अफजल गुरू और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारोपी पेरारीवालन, मुरूगन और संतन सजा मिलने के बाद भी सरकारी दामाद बने हुए हैं। इस पर मित्र ने चांडाल बाप की चिंता दूर करते हुए कहा कि फिक्र मत करो सुना है कि धरती अब अन्ना हजारे नाम के एक शख्स ने जन्म लिया है। जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है। उसके आंदोलन को समर्थन भी खूब मिल रहा है। नेता भी अपनी दुकान लुटने के डर से घबराए हुए हैं। चांडाल ने फिर झुंझलाते हुए कहा-नेताओं का कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने अन्ना हजारे को ही फंसाना शुरू कर दिया है। अफसोस जाहिर करते हुए मित्र ने भारत के प्रेतों को छोड़ विदेश में वैम्पायर तलाश करने की सलाह दी। इस पर चांडाल खुशी से उझल पड़ा और दामाद की तलाश में विदेशी धरती के लिए रवाना हो गया।

रविवार, 4 सितंबर 2011

हमारे प्यारे गुरूजी

पता नहीं क्यों मैं निबंध में फेल हो जाता हूं। हर बार इतना अच्छा लिखता हूं फिर भी...। इस बार हाईस्कूल में ‘हमारे प्यारे गुरूजी’ पर निबंध लिखने के लिए आया था। अब आप देखिए और बताइये—
ईश्वर की एक ऐसी संरचना जिसे देखकर प्राय: बच्चे डर जाते हैं, गुरूजी कहते हैं। गुरूजी के दो पैर, एक नाक, एक मुंह और दो आंखें होती हैं। इनको मास्टर, मास्साब, अध्यापक, प्रोफेसर या सर कहकर पुकारते हैं। इनकी उत्पत्ति रामायण काल से भी पहले की मानी जाती है। उस समय ये जंगलों आदि में नदी किनारे के आश्रमों में पाये जाते थे। तब ये एक साधारण धोती धारण करते थे। छात्र इनके पास आश्रम में रहकर ही शिक्षा ग्रहण करते थे, लेकिन फीस का भुगतान नहीं करते थे। इससे गुरूजी खासे नाराज रहते थे और उनकी रैगिंग स्वयं ही लेते थे। पुरानी खबर है कि आरूणी नाम के एक शिष्य को उसके गुरू ने आधी रात को तेज बारिश में अपने खेत की मेढ़ बनाने भेज दिया। पानी का बहाव बहुत तेज था इसलिए मेढ़ नहीं बन पा रही थी, मगर गुरूजी के डर से वह खुद मेढ़ बनकर वहीं लेट गया। एकलव्य को तो अपने अंगूठे से ही हाथ धोना पड़ गया। भगवान राम और कृष्ण भी इस रैगिंग से अछूते नहीं रह पाए। उस काल में प्रसिद्ध पत्रकार नारद जी को इंटरव्यू के दौरान भगवान राम ने बताया कि हम तो गुरू वशिष्ट की रैगिंग से परेशान हैं। आधी-—आधी रात तक पैर दबवाते रहते हैं।
लेकिन आजकल गुरूओं का ट्रेंड बदल गया है। अब गुरू आधुनिकता की मशीन से बाहर निकलकर आ रहे हैं और गा रहे हैं—धोती कुर्ता छोड़ा, मैंने सूट—बूट डाला...। मुंह में पान मसाला चबाना, सिगरेट पीना इनकी प्रमुख पहचान है। केवल शिक्षा देना ही नहीं बल्कि परीक्षा में पास कराना भी इनकी जिमेदारी होती है। इसके लिए इनके पास अलग से फीस देकर प्राइवेट ट्यूशन पढऩी अनिवार्य होती है। कालेज में ज्यादातर इनका समय दूसरे शिक्षकों के साथ गप्पे मारने, राजनीति पर चर्चा करने, विदेशी संस्कृति की बुराई करने, फिल्मों में दिखाई जा रही अश£ीलता, क्रिकेट मैच में सचिन और धोनी की परफारमेंस पर वाद—विवाद करने में व्यतीत होता है। क्लास में पीरियड लेना ये अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
स्कूल या कालेज में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ करना, उन्हें एसएमएस करना, जर्मप्लाज्म की चोरी करना इनकी प्रमुख गतिविधियों में शामिल है। छात्रों को सुधारने के लिए हाथ—पैर तोडऩे के उनके पास विशेषाधिकार प्राप्त हैं। फिल्मों में अभी इन्हें बड़े रोल नहीं मिल पा रहे हैं। फिल्म में ये केवल क्लास में हीरो—हीरोइनों का आपस में परिचय कराने और लेडी टीचरों के साथ इश्क लड़ाने का कार्य करते हैं। दर्शकों को हंसाने में इनका प्रमुख योगदान रहता है। शिक्षकों की ऐसी महानताओं को ध्यान में रखते हुए हम शिक्षक दिवस मनाते हैं। हमें अपने गुरूओं पर गर्व है।

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

टिकट के लिए पत्र

-व्यंग्य
चुनाव की दस्तक होते ही राजनीतिक पार्टियों के हाईकमान में टिकट पाने के लिए नेताओं में होड़ मची हुई है। चुनाव प्रभारियों के पास इन दिनों टिकट मांगने वाले दावेदारों के पत्रों का ढेर लगा हुआ है। सभी उन्हें रिझाने में धन-बल से लगे हुए हैं। इनमें से एक पत्र पर मुझे प्राप्त हुआ है। जो कुछ इस प्रकार है-माननीय नेताजीजय भारत! सुना है कि मेरे क्षेत्र से चुनाव के लिए कई लोगों ने आपके सामने दावेदारी पेश की है, छोड़िए उनको। आप तो जानते ही हैं कि हमारा और आपका संबंध बहुत पुराना है। आज भी विधानसभा क्षे़त्र में आप गुंडों की जो दहशत देखते हैं वो मेरी वजह से ही है। उम्र चाहे जितनी भी हो गई हो, लेकिन क्षेत्र में दबंगई पूरी बरकरार है। आपके पिताजी और मैने साथ साथ ही पहले अपराध और फिर राजनीति की दुनिया में कदम रखा। न जाने कितने खून, रेप, अपहरण, डकैतियां कीं। हमेशा थानों में बस रिपोर्ट दर्ज होकर रह गई। कभी पुलिस घर पर नहीं आ पाई। अब तो ये नए-नए बच्चे आ गए हैं, जो छोटे-मोटे टूजी स्पैक्ट्रम, कॉमनवेल्थ और काले धन जैसे घोटाले भी ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं। फंस जाते हैं और पार्टी का नाम खराब करते हैं। हमारे जमाने में तो सरकारी पैसा कब सरक कर जेब में पहुंच जाता था, पता ही नहीं चलता था। मुझे याद है भोपाल गैस कांड। कब कांड हुआ और कब वारेन एंडरसन देश छोड़कर सरकारी शानौशौकत के साथ चला गया, लोग आज तक असमंजस में हैं। चलिए खैर छोड़िए ये सब पुरानी बातें हैं। सुना है कि आप फिल्मी सितारों को टिकट देने में काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। अगर ऐसा है तो इस लिहाज से भी मै टिकट के लिए उपयुक्त हूं। अभी-अभी क्षेत्र में महाभारत की लीला शुरू हुई है। इसमें मैंने धृतराष्टþ का रोल निभाया है। वैसे धृतराष्ट्र की भूमिका मेरे राजनीतिक जीवन में हमेशा रहती है। जनता जिए या मरे हम तो आंख बंद किए हुए बैठे रहते हैं। हमारे कौरव रूपी गंुडे शहर में दंगा कराने, लोगों में फूट डलवाने, जातिवाद फैलाने आदि में आगे रहते हैं। हम चुपचाप कौरव और पांडवों के जुंए के खेल में मनमानी और ज्यादतियों को देखते रहते हैं। जनता रूपी द्रौपदी का चीरहरण होता रहता है और हम आनंद लेते रहते हैं। द्रौपदी तो पहले से ही पांचाली थी, कुछ लोगों ने और उसे निर्वस्त्र कर दिया तो इसमें मेरा क्या दोष! इसके अलावा रामलीला में रावण का रोल तो मेरे सिवा कोई कर नहीं पाता। जो भी चीज मुझे पसंद आती है, चाहे वो माता सीता हो या गरीबों की झोपड़ियां। उन्हें तुड़वाकर उन पर कब्जा कर लेता हूं। हर बार की तरह इस बार भी लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान की गुगली दे रखी है। सारे मुसलिम और हिंदू वोट मेरी जेब में हैं। इसलिए उम्मीद करता हूं कि हर बार की तरह इस बार भी आप मुझे ही टिकट देंगे। चुलबुल पांडे हुड़-हुड़ दबंग।

रविवार, 24 अप्रैल 2011

हातिमताई का पुनर्जन्म

हातिमताई का पुनर्जन्म हो गया है। ये अधिकतर हाफिज भाई कहते हैं। वे अपने को हातिमताई का दूसरा अवतार मानते हैं। इसलिए उन्होंने अपना नाम भी हातिमताई ही रख लिया है। वे हमेशा दूसरों की मदद को तत्पर रहते हैं। अगर कोई उन्हें अपनी परेशानी नहीं बताता है तो उसकी नाक में दम कर वे दुविधा उगलवा ही लेते हैं। हातिमताई को लोगों की समस्याएं सुलझाने का बड़ा शौक है। अधिकतर उनके घर में गरीब मजदूर डेरा डालकर पड़े रहते हैं, उनकी मोटरसाइकिल मोहल्ले के सभी लोग चलाते दिख जाते है। हातिमताई की आधे से ज्यादा सैलरी उधार पर ही रहती है। मुसीबत के वक्त मोहल्ले वाले हमेशा उनको आगे कर देते हैं। उनकी दरियादिली से मोहल्ले में उनकी एक विशेष पहचान बन गई है। लेकिन उनको तलाश थी अपने पिछले जन्म में सात सवाल पूछने वाली हुस्नबानो की। काफी खोजबीन के बाद एक दिन वह उनको मिल ही गई। इस जन्म में उनका नाम जनता था। तंग हाल जनता कभी गरीबी, कभी महंगाई, कभी सांप्रदायिक दंगों तो कभी घोटालों से सताई हुई है। इतना सबकुछ सहने के बाद अब सिवाय कुंठा झेलने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं है। ऊपर से अपनी आदत से मजबूर हातिमताई “मुझे बताया- मुझे बताया“ कहकर उसकी परेशानी और बढ़ाने लगे। अंत में तंग होकर उसने अपने सात सवालों का उत्तर लाने को कह ही दिया। हातिमताई जैसे इसी पल के इंतजार में ही थे। जनता ने अपने सवाल बताने शुरू किए-1. ऐसी कौन सी चीज है, जिस पर हमारे देश के नेता राजनीति नहीं करते।2. क्या अन्ना हजारे की ओर से भ्रष्टाचार के विरोध में चलाई गई मुहिम कामयाब हो पाएगी।3. क्या कभी इस देश कोे स्वच्छ राजनीति या स्वच्छ नेता मिल पाएगा।4. आखिर कब तक जनता इस आस में हर रात भूखी सोती रहेगी कि कल उसे भरपेट खाना मिलेगा।5. कब लोग देर रात को छोड़ो दिन में ही बेखौफ घूम सकेंगे। 6. कब तक नेता गरीब के घर में रोटी खाकर, उन्हें झूठे सपने दिखाकर लूटते रहेंगे।7. अपनी आवाज उठाने वाली जनता कब तक पुलिस की लाठियों से पिटती रहेगी।हातिमताई सातों सवालों को कागज में नोटकर जवाबों के लिए दिल्ली रवाना हो गए। एक हते तक उनकी कोई खबर नहीं आई। ठीक आठवें दिन हातिमताई हांफते हुए हुस्नबानो (जनता) के पास पहुंचे। उनके कपड़े फटे और बाल बिखरे हुए थे। शायद कई दिनों से उन्होंने खाना भी नहीं खाया था। हुस्नबानो ने उनकी हालत पर ज्यादा ध्यान न देते हुए उत्साह वश तुरंत अपने सवालों के जवाब पूछ लिए। बेहाल हातिमताई ने अपना यात्रा वृतांत सुनाते हुए जवाब देना शुरू किया-तुम्हारे पहले सवाल का उत्तर जैसे ही मैंने दिल्ली के एक नेता से पूछा तो वह भड़क गया। उसने मुझ पर विरोधी पार्टी का गुर्गा, देशद्रोही, माओवादी, आतंकवादी और न जाने क्या-क्या आरोप लगाकर पुलिस को सौंप दिया। सात दिनों तक पुलिस वालों ने मेरी जमकर ठुकाई की। बड़ी मुश्किल से आठवें दिन पुलिस को रिश्वत देकर जैसे-तैसे छूटकर आया हूं। ये नेता कभी भी किसी पर राजनीति कर सकते हैं। हातिमताई बनने का भूत मेरे ऊपर से उतर चुका है। मैं हाफिज खान ही ठीक हूं। इतना कहकर हातिमताई अपने घर वापस लौट गए और जनता के बाकी सवाल अनसुलझे ही रह गए।

रविवार, 2 जनवरी 2011

मुंगेरीलाल का सपना

मुंगेरीलाल ने इस बार नए साल में फिर हसीन सपना देखा। देखा कि महंगाई कम हो गई है। प्याज पांच रूपये किलो मिल रहा है, पेट्रोल भी दस रूपये सस्ता हो गया है। हर युवा के पास अब रोजगार है। अब जाति और क्षेत्र के नाम पर राजनीति नहीं होती, गरीब अब ठंड से नहीं मरता उसके ऊपर अपनी पक्की छत है। भारत अब फिर से सोने की चिड़िया कहा जाने लगा है। सपना टूटते ही मुंगेरीलाल मेरे पास दौड़े-दौड़े चले आए और हमेशा की तरह लंबी-चौड़ी हांकने लगे।बोले- बुजुर्गों ने कहा है कि दिन का देखा सपना हमेशा सच होता है। देखना इस बार मेरा सपना जरूर पूरा होगा। इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा- माना कि सुबह के समय देखे गए सपने अकसर पूरे होते हैं, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी का प्रधानमंत्री बनने का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की लालटेन जलने का नाम ही नहीं ले रही। बसपा सुप्रीमो मायावती का अपने पुतले लगवाने का सपना बार-बार कोर्ट तोड़ रही है। सलमान खान का ऐश्वर्या राय से शादी करने का सपना हमेशा के लिए सपना ही बन गया। आमिर खान भी अब तक सपने में ही ऑस्कर देख रहे हैं। अभिषेक बच्चन ने तो अब हिट फिल्म के सपने देखना ही छोड़ दिया है। कभी दर्शक तरस खाकर फिल्म हिट करा दे ंतो वो अलग बात है। मुंगेरीलाल गुस्साए-तुम ये राजनीति और फिल्मों की बातें छोड़ो। वहां तो ऐसा चलता ही रहता है। आम आदमी के बारे में सोचो। रतन टाटा ने देखो नैनो बनाकर आम आदमी के कार पर बैठने का सपना पूरा कर दिया। अब हर आम आदमी कार खरीदने को उत्सुक है। मैने फिर मुंगेरीलाल को सचाई दिखाई-आम आदमी के इस सपने को केंद्र सरकार ने पेटþोल के दाम बढ़ाकर फिर सपना बना दिया। लोगों का कार पर तो छोड़ो बाइक पर भी चलना मुश्किल हो गया है। अब वो दिन दूर नहीं जब कार के साथ पेटþोल खरीदने के लिए भी लोन लेना पड़ेगा। आम आदमी सपने देखता नहीं, उसे सपने दिखाए जाते हैं। चुनाव से पहले नेता और लूटने से पहले पूंजीपति अकसर लुभावने सपने दिखाकर अपने सपने पूरे करते हैं। मुंगेरीलाल नहीं माने और बोले-ओफ! सपने प्रायः दो प्रकार के होते हैं। एक वो जो पूरे हो जाते हैं; दूसरे वो जो पूरे नहीं होते हैं। अब देखो हर युवा शादी से पहले जैसे अपने जीवनसाथी के सपने देखता है उसे वैसा ही जीवनसाथी मिलता है। इससे खुश होकर लोग अक्सर अपने बेटे का नाम स्वप्निल और बेटी का नाम सपना रख लेते हैं। मैंने फिर आइना दिखाने की कोशिश की-शादी के बाद ही लोगों को सपने की असलियत का पता चलता है, आटे-दाल का भाव मालूम होता है। जब सुबह से शाम तक आफिस में बॉस की और बाद में पत्नी की डांट सुनने को मिलती है तब बैचलर लाइफ की ही याद आती है। सपनों पर मेरे अनुभवों से गुस्साकर मुंगेरीलाल हतोत्साहित हो गये। उन्हें लगने लगा कि शायद हर बार की तरह इस बार भी उनका यह सपना हसीन बनकर न रह जाए। लेकिन हम कामना करते हैं कि यह सपना पूरा न सही तो थोड़ा ही पूरा हो।