रविवार, 2 जनवरी 2011

मुंगेरीलाल का सपना

मुंगेरीलाल ने इस बार नए साल में फिर हसीन सपना देखा। देखा कि महंगाई कम हो गई है। प्याज पांच रूपये किलो मिल रहा है, पेट्रोल भी दस रूपये सस्ता हो गया है। हर युवा के पास अब रोजगार है। अब जाति और क्षेत्र के नाम पर राजनीति नहीं होती, गरीब अब ठंड से नहीं मरता उसके ऊपर अपनी पक्की छत है। भारत अब फिर से सोने की चिड़िया कहा जाने लगा है। सपना टूटते ही मुंगेरीलाल मेरे पास दौड़े-दौड़े चले आए और हमेशा की तरह लंबी-चौड़ी हांकने लगे।बोले- बुजुर्गों ने कहा है कि दिन का देखा सपना हमेशा सच होता है। देखना इस बार मेरा सपना जरूर पूरा होगा। इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा- माना कि सुबह के समय देखे गए सपने अकसर पूरे होते हैं, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी का प्रधानमंत्री बनने का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ। आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की लालटेन जलने का नाम ही नहीं ले रही। बसपा सुप्रीमो मायावती का अपने पुतले लगवाने का सपना बार-बार कोर्ट तोड़ रही है। सलमान खान का ऐश्वर्या राय से शादी करने का सपना हमेशा के लिए सपना ही बन गया। आमिर खान भी अब तक सपने में ही ऑस्कर देख रहे हैं। अभिषेक बच्चन ने तो अब हिट फिल्म के सपने देखना ही छोड़ दिया है। कभी दर्शक तरस खाकर फिल्म हिट करा दे ंतो वो अलग बात है। मुंगेरीलाल गुस्साए-तुम ये राजनीति और फिल्मों की बातें छोड़ो। वहां तो ऐसा चलता ही रहता है। आम आदमी के बारे में सोचो। रतन टाटा ने देखो नैनो बनाकर आम आदमी के कार पर बैठने का सपना पूरा कर दिया। अब हर आम आदमी कार खरीदने को उत्सुक है। मैने फिर मुंगेरीलाल को सचाई दिखाई-आम आदमी के इस सपने को केंद्र सरकार ने पेटþोल के दाम बढ़ाकर फिर सपना बना दिया। लोगों का कार पर तो छोड़ो बाइक पर भी चलना मुश्किल हो गया है। अब वो दिन दूर नहीं जब कार के साथ पेटþोल खरीदने के लिए भी लोन लेना पड़ेगा। आम आदमी सपने देखता नहीं, उसे सपने दिखाए जाते हैं। चुनाव से पहले नेता और लूटने से पहले पूंजीपति अकसर लुभावने सपने दिखाकर अपने सपने पूरे करते हैं। मुंगेरीलाल नहीं माने और बोले-ओफ! सपने प्रायः दो प्रकार के होते हैं। एक वो जो पूरे हो जाते हैं; दूसरे वो जो पूरे नहीं होते हैं। अब देखो हर युवा शादी से पहले जैसे अपने जीवनसाथी के सपने देखता है उसे वैसा ही जीवनसाथी मिलता है। इससे खुश होकर लोग अक्सर अपने बेटे का नाम स्वप्निल और बेटी का नाम सपना रख लेते हैं। मैंने फिर आइना दिखाने की कोशिश की-शादी के बाद ही लोगों को सपने की असलियत का पता चलता है, आटे-दाल का भाव मालूम होता है। जब सुबह से शाम तक आफिस में बॉस की और बाद में पत्नी की डांट सुनने को मिलती है तब बैचलर लाइफ की ही याद आती है। सपनों पर मेरे अनुभवों से गुस्साकर मुंगेरीलाल हतोत्साहित हो गये। उन्हें लगने लगा कि शायद हर बार की तरह इस बार भी उनका यह सपना हसीन बनकर न रह जाए। लेकिन हम कामना करते हैं कि यह सपना पूरा न सही तो थोड़ा ही पूरा हो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें