हातिमताई का पुनर्जन्म हो गया है। ये अधिकतर हाफिज भाई कहते हैं। वे अपने को हातिमताई का दूसरा अवतार मानते हैं। इसलिए उन्होंने अपना नाम भी हातिमताई ही रख लिया है। वे हमेशा दूसरों की मदद को तत्पर रहते हैं। अगर कोई उन्हें अपनी परेशानी नहीं बताता है तो उसकी नाक में दम कर वे दुविधा उगलवा ही लेते हैं। हातिमताई को लोगों की समस्याएं सुलझाने का बड़ा शौक है। अधिकतर उनके घर में गरीब मजदूर डेरा डालकर पड़े रहते हैं, उनकी मोटरसाइकिल मोहल्ले के सभी लोग चलाते दिख जाते है। हातिमताई की आधे से ज्यादा सैलरी उधार पर ही रहती है। मुसीबत के वक्त मोहल्ले वाले हमेशा उनको आगे कर देते हैं। उनकी दरियादिली से मोहल्ले में उनकी एक विशेष पहचान बन गई है। लेकिन उनको तलाश थी अपने पिछले जन्म में सात सवाल पूछने वाली हुस्नबानो की। काफी खोजबीन के बाद एक दिन वह उनको मिल ही गई। इस जन्म में उनका नाम जनता था। तंग हाल जनता कभी गरीबी, कभी महंगाई, कभी सांप्रदायिक दंगों तो कभी घोटालों से सताई हुई है। इतना सबकुछ सहने के बाद अब सिवाय कुंठा झेलने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं है। ऊपर से अपनी आदत से मजबूर हातिमताई “मुझे बताया- मुझे बताया“ कहकर उसकी परेशानी और बढ़ाने लगे। अंत में तंग होकर उसने अपने सात सवालों का उत्तर लाने को कह ही दिया। हातिमताई जैसे इसी पल के इंतजार में ही थे। जनता ने अपने सवाल बताने शुरू किए-1. ऐसी कौन सी चीज है, जिस पर हमारे देश के नेता राजनीति नहीं करते।2. क्या अन्ना हजारे की ओर से भ्रष्टाचार के विरोध में चलाई गई मुहिम कामयाब हो पाएगी।3. क्या कभी इस देश कोे स्वच्छ राजनीति या स्वच्छ नेता मिल पाएगा।4. आखिर कब तक जनता इस आस में हर रात भूखी सोती रहेगी कि कल उसे भरपेट खाना मिलेगा।5. कब लोग देर रात को छोड़ो दिन में ही बेखौफ घूम सकेंगे। 6. कब तक नेता गरीब के घर में रोटी खाकर, उन्हें झूठे सपने दिखाकर लूटते रहेंगे।7. अपनी आवाज उठाने वाली जनता कब तक पुलिस की लाठियों से पिटती रहेगी।हातिमताई सातों सवालों को कागज में नोटकर जवाबों के लिए दिल्ली रवाना हो गए। एक हते तक उनकी कोई खबर नहीं आई। ठीक आठवें दिन हातिमताई हांफते हुए हुस्नबानो (जनता) के पास पहुंचे। उनके कपड़े फटे और बाल बिखरे हुए थे। शायद कई दिनों से उन्होंने खाना भी नहीं खाया था। हुस्नबानो ने उनकी हालत पर ज्यादा ध्यान न देते हुए उत्साह वश तुरंत अपने सवालों के जवाब पूछ लिए। बेहाल हातिमताई ने अपना यात्रा वृतांत सुनाते हुए जवाब देना शुरू किया-तुम्हारे पहले सवाल का उत्तर जैसे ही मैंने दिल्ली के एक नेता से पूछा तो वह भड़क गया। उसने मुझ पर विरोधी पार्टी का गुर्गा, देशद्रोही, माओवादी, आतंकवादी और न जाने क्या-क्या आरोप लगाकर पुलिस को सौंप दिया। सात दिनों तक पुलिस वालों ने मेरी जमकर ठुकाई की। बड़ी मुश्किल से आठवें दिन पुलिस को रिश्वत देकर जैसे-तैसे छूटकर आया हूं। ये नेता कभी भी किसी पर राजनीति कर सकते हैं। हातिमताई बनने का भूत मेरे ऊपर से उतर चुका है। मैं हाफिज खान ही ठीक हूं। इतना कहकर हातिमताई अपने घर वापस लौट गए और जनता के बाकी सवाल अनसुलझे ही रह गए।
मजेदार व्यंग्य गौरव भाई। क्या भाई ब्लाग बना लिए बताए भी नहीं। कुछ दिनों पहले आपका मेल आया तो पता चला। आपके लेखन के प्रशंसक तो हम शुरू से हैं। हुस्नबानो के ऐसे सवालों के डर से तो लगता है अब हातिमताई भुलकर पुनर्जन्म लेने की सोचेंगे भी नहीं।
जवाब देंहटाएंdhanywaad sumit
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