मंगलवार, 29 नवंबर 2016

-गीताक संशोधित उपदेश-

-गीताक संशोधित उपदेश-
भक्तोंक् बार-बार तिख् सवालोंल दुखी पोंगा पंडितोंल यो बार भागवत गीता कें ई बदलणक फैसाल् करि ल्हे। यैक लिजी पोंगा पंडितोंकि ठुल्ली सभा बुलाई गै। तय तारीकाक् दिन देशाक् सबै पोंगा पंडित-जोगी बाबा आदि पुजी।
सभाकि अध्यक्षता करनेर निराशाराम बापूल सबन् हैं पैली बुलाण शुरू करौ-संत जनौ ! बखत कैकै नि हुन। बदलावै जीवन छ,यै लिजी बखताक् अनुसार सब चीज बदलते रूण चैंनी। यौ भौत दुखाक् दगाङ कूँण पङना कि सन् १९५० में बणीं संविधान में लै जाँ कतू बार सुधार {संशोधन} हैगो। वाईं लोगों कें धर्मक् पाठ पढूनी वालि भागवत गीता में एक बारलै सुधार न हैरै। भगवान श्रीकृष्णल अर्जुन कें जो उपदेश दी उ महाभारतैकि लङै करण हैं पैलीयाक छी। पांडवन् कें लङैंक् बाद के करण चैंछ? यौ भगवान श्रीकृष्णल बताए न्हाँ,यैकै वील पांडवन् कें मोक्ष पाणक् सई बाट् न मिल। आब कलियुग में भगतोंकि तकलीफ बढि ग्यै। दिन पर दिन भगत उल्ट-सुल्ट सवाल करनई, जनर जवाब गीता में घंटों ढुणन् पर लै न मिलन्। अदालतों में लै खाली गीता में हात धरैबेर कसम खवै ल्ही जैं। यौ न देखी जान् कि गीताक उपदेश कतुक् पुराण है गई। यमें सुधाराक् लिजी हुकुम दी जाओ,यै हैं भल हमन् यौ काम हुंणी आब खुदै अघिल ऊण होल्। गीता में सुधाराक लिजी सबनाक् बिचार आमंत्रित छन्,यतुक कै बेर निराशाराम ज्यू बैठ गई।
आब् पोंगा पंडित महासभाक अध्यक्ष अनियमित्तानंद स्वामी ठाङ भई-हे साधू ! गीता में श्री कृष्णल कै राखौ करम करौ फलकि ईछ्या न करौ। यौ बात ऐलाक परिवेश में ठिक् न बैठनि। करम हम करूँ और फल दुहर खाओ,यौ उपदेश जकें सुणैं दियो उ साधु-बाबाओंक पास दुहरीबारा लौटीबेर न ऊँन। अच्यालन् उसिक लै लोग बिना काम करियै फलकि ईछ्या धरनीं। सबै जाणी लॉटरीक नंबर पुछण हूँ ऊनई। बस एक्कै बार लागि जाओ त पुर जिंदगी भरीक् अरामै-अराम। यै लिजी यौ उपदेश कें तुरंतै हटूँण होल्।
यैक बाद दुहार संत बाबा कामदेवल हात जोङिबेर आपण बिचार धरण शुरू करी-संतजनौ वेदपुराणों कें पढिबेर,हम लोगन् थैं साँचि बुलाण हूँ कूँनू। पैं यस आब संभव न्हाँ। कलियुग में झुटि बुलाण आम आदिमकि मजबूरी न बल्कि जरवत लै छ। औपिस में अगर आदिम झुटि न बुलाओ कि वीकि स्यैणी बीमार हैरै, त उकें छुट्टी कसिक मिललि? अदालत में वकील झुटि गभाई या सबूत पेश न करलौ, त उ मुकर्दम कसिक जीतल? डॉक्टर अगर मामूली बुखार कें टायफैट बतैबेर मरीज धैं पैंस न ऐंठौल त वीकि दुकानदारी कसिक चलैलि? नेता अगर जनता थैं झुट वैद न करलौ त उ चुनाव कसिक जीतल? क्वे च्यल् अगर क्वे चेली हुणी झुटि न बुलालौ त उ आपणि चार्-चार् दगङू चेलियान् {गर्लफ्रेंडन्} कें कसिक संभालल्? यै लिजी यौ कथन कें बंद करण, मनखीक भलाई में छ।
  यौ बार सबन् हैं ठुल बाबा श्री श्री २०१० हवाई जहाजल् प्रवचन शुरु करौ-भगत जनौ .......। चारों तरबटी महात्माओं कें देखिबेर,बाबा तुरंत गलती सुदारते हुए दुहरीबेरा बुलाणी-छिमा करिया श्रीमन् ! दिनभरी एकसा प्रवचन दिनै-दिनै आदत जसि बणिगै। खैर हम लोग भारतवासियों कें आपस में भाई-बैणी बतूंनै रै गयां और महाराष्ट्र में राजठाकरे मराठी मनख्योंक् राज बतैबेर सारी प्रसिद्धि ल्हिनगो। हमन् थैं प्रवचन सुणन हुँ बस बुणियै स्यैणी ऊँनी। उथकै एकता कपूरल् घर में क्लेश और जाल साजीक नाटक दिखै-दिखैबेर सबै ज्वान स्यैणियों कें आपणि तरफ खैंचि हालौ। हम लोगन् कें आपण भितेर सुख-शान्ति ढुण नकै संदेश दिनै रयाँ। आब कदम उठूणै पङल, भौत हैगै भाई-बंदीकि बात। आत्म संतुष्टीकि पुंतुरि, सहनशीलताकि सीमा।
  सभा खतम हुणाक् बाद गीता में सुधार करण हूँ इग्यार पोंगा पंडितोंकि एक टीमक गठन करी गो। टीमल् पाँच सालोंकि खूब मिहनताक् बाद "गीताक उपदेशों में सुधार" नामक नई ग्रंथ बजार में उतारौ,ग्रंथाक कुछेक महत्वपूर्ण अंश याँ दी जानई....
० काम करिबेर क्वे राज् न बणिरै,यै लिजी फलकि ईछ्या सबकुछ छ। फल पाणाक् लिजी अगर कै कें घूस दिण / ल्हिण या घोटाल करण पङौ त चुकण न चैंन।
० झुटि बुलाण क्वे पाप न्हाँ बल्कि काम आसान करणैकि एक तरकीब छ। अगर सतयुक में राजा हरीशचंद्र झुटि बुलै दिना त जिंदगी भरि राजपाठक् सुख भोगन् और मरण हबेर पैली एकबेरा गंगा नै {स्नान} करि ऊँना त सब पाप लै ध्वेई जान्।
० पङोसीक सुख देखिबेर जलण सिखो और उकें खड्डन् धक्यूंनैकि खूब कोशिश करो। जिंदगी में अगर तुम सुखी न्हाँता त तुमर पङोसी कें सुखी रूणक क्वे हक न्हाँ।
० दुहारोंकि भलाई करण आम मनखीक काम न्हाँ,यै लिजी भलाईक काम भगवानाक् ऊपर छोडि दिण चैं। मनखी कें क्वे लै काम में आपणै लोभ देखण चैं।
० क्वे लै मनखीक दगङ तबै तक दिण चैं जब तलक उ बटी काम निकवना,काम निकवनाक् बाद झट्ट आपण रंग बुदई ल्हिण चैं।
० जसिक पुराणि गीता में भगवान कृष्णल् कै राखौ दुश्मण सिर्फ दुश्मण हूँ,चाहे उ आपण सांकै किलै न्हाँ। आब् नई गीता में दुश्मणोंकि केर और जादा बढै हालै। आब अगर जमीन जायदात कें ल्हीबेर मैं-बाप या स्यैणी लै बाट् में जिटक् बणिबेर किलै न आओ,उनन् केंलै बाट् बटी हटूंण में न चुकण चैंन।
  जागैकि कमी हुणाक् कारण सबै उपदेश न लिखी जै सकनै,यै लिजी पुरि जानकारी ल्हिण तैं संशोधित गीताक उपदेश बजार बटी खरिदिबेर पढिया।
.....धन्यवाद...
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मूल रचना- गाौरव ‌त्रिपाठी, हल्‍द्वानी
अनुवादक- राजेंद्र ढैला,काठगोदाम।

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