-व्यंग्य,
जैसे-जैसे भूतनी बड़ी हो रही थी वैसे-वैसे उसके चांडाल बाप और डायन मां को चिंता सताने लगी। भूतनी का आए रात रोता हुआ चेहरा चांडाल बाप देख नहीं पा रहा था। पहले उसका चेहरा कितना डरावना लगता था लोग उसे देखते ही सांस लेना भूल जाते थे। वह पहले कितना लोगों का खून चूसा करती थी। अब तो उसका किसी को डराने का मन ही नहीं करता। उसके लंबे-लंबे बाल, बड़े-बड़े दांत, नुकीले नाखून, भयानक आंखे, गठिला बदन किसी साजन (प्रेत) की तलाश में सूखते जा रहे हैं। अपनी बेटी को परेशान देख आखिरकार चांडाल बाप ने उसके लिए एक प्रेत पति ढूंढ़ने का फैसला कर लिया। मृत्यूलोक और भूतलोक का पूरा चक्कर लगाने के बाद दामाद की तलाश में चांडाल बाप अंत में अपने मित्र के पास पहुंचा। लटके हुए मुंह के साथ पहुंचे चांडाल को देख मित्र ने उससे परेशानी का कारण पूछा। इस पर चांडाल ने कबीरदास के अंदाज में आते हुए उत्तर दिया-दामाद जो ढूंढ़न मैं गया प्रेत न मिलया कोई। मित्र के इतनी टेक्नीकल बात न समझ पाने पर चांडाल ने स्पष्ट व्यथा सुनाना शुरू किया-अब क्या बताऊं मेरी बेटी भूतनी दिन-ब-दिन यौवन के दिनों में अंगड़ाई ले रही है। लेकिन अब भूतों में कोई अच्छा वर मिलता ही नहीं है। पहले धरती पर आए दिन पापियों का नाश होता रहता था। इस कारण पृथ्वीलोक से कभी हिरणाकश्यप, कभी रावण, तो कभी महिषासुर आते ही रहते थे। क्या शान थी उस जमाने में भूतलोक की। हमेशा रौनक रहती थी। कोई प्रेत अपनी डरावनी आवाज सुना रहा है तो कोई पिशाच अपने भयानक शरीर से चीखने को मजबूर कर रहा है। लेकिन अब तो धरती से कोई बीस दिन से भूखा मरकर आ रहा है तो कोई सीधा-सादा व्यक्ति अपनी ईमानदारी के कारण। कोई डाक्टर की लापरवाही से मरता है। अधिकतर लोग टेªन दुघर्टना, बस हादसे, प्लेन क्रैस या फिर दंगों में मरकर पहुंचते हैं। ये लोग वहां तो रोते ही रहते हैं, यहां भूत बनकर भी चैन नहीं लेते। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? मित्र ने जानने की कोशिश की। चांडाल बाप ने बात को विस्तार दिया-ये सब धरती पर रहने वाले सत्ताधारी नेताओं की वजह से हो रहा है। ये नेता खुद तो मरते नहीं साथ में किसी पापी को भी मरने नहीं देते। कोर्ट हत्यारों को फांसी की सजा सुनाती है और ये अपने वोट बैंक के चक्कर में दया याचना मांगने लगते हैं। संसद में हमले के आरोपी अफजल गुरू और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारोपी पेरारीवालन, मुरूगन और संतन सजा मिलने के बाद भी सरकारी दामाद बने हुए हैं। इस पर मित्र ने चांडाल बाप की चिंता दूर करते हुए कहा कि फिक्र मत करो सुना है कि धरती अब अन्ना हजारे नाम के एक शख्स ने जन्म लिया है। जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहा है। उसके आंदोलन को समर्थन भी खूब मिल रहा है। नेता भी अपनी दुकान लुटने के डर से घबराए हुए हैं। चांडाल ने फिर झुंझलाते हुए कहा-नेताओं का कोई भरोसा नहीं है। उन्होंने अन्ना हजारे को ही फंसाना शुरू कर दिया है। अफसोस जाहिर करते हुए मित्र ने भारत के प्रेतों को छोड़ विदेश में वैम्पायर तलाश करने की सलाह दी। इस पर चांडाल खुशी से उझल पड़ा और दामाद की तलाश में विदेशी धरती के लिए रवाना हो गया।
मंगलवार, 6 सितंबर 2011
रविवार, 4 सितंबर 2011
हमारे प्यारे गुरूजी
पता नहीं क्यों मैं निबंध में फेल हो जाता हूं। हर बार इतना अच्छा लिखता हूं फिर भी...। इस बार हाईस्कूल में ‘हमारे प्यारे गुरूजी’ पर निबंध लिखने के लिए आया था। अब आप देखिए और बताइये—
ईश्वर की एक ऐसी संरचना जिसे देखकर प्राय: बच्चे डर जाते हैं, गुरूजी कहते हैं। गुरूजी के दो पैर, एक नाक, एक मुंह और दो आंखें होती हैं। इनको मास्टर, मास्साब, अध्यापक, प्रोफेसर या सर कहकर पुकारते हैं। इनकी उत्पत्ति रामायण काल से भी पहले की मानी जाती है। उस समय ये जंगलों आदि में नदी किनारे के आश्रमों में पाये जाते थे। तब ये एक साधारण धोती धारण करते थे। छात्र इनके पास आश्रम में रहकर ही शिक्षा ग्रहण करते थे, लेकिन फीस का भुगतान नहीं करते थे। इससे गुरूजी खासे नाराज रहते थे और उनकी रैगिंग स्वयं ही लेते थे। पुरानी खबर है कि आरूणी नाम के एक शिष्य को उसके गुरू ने आधी रात को तेज बारिश में अपने खेत की मेढ़ बनाने भेज दिया। पानी का बहाव बहुत तेज था इसलिए मेढ़ नहीं बन पा रही थी, मगर गुरूजी के डर से वह खुद मेढ़ बनकर वहीं लेट गया। एकलव्य को तो अपने अंगूठे से ही हाथ धोना पड़ गया। भगवान राम और कृष्ण भी इस रैगिंग से अछूते नहीं रह पाए। उस काल में प्रसिद्ध पत्रकार नारद जी को इंटरव्यू के दौरान भगवान राम ने बताया कि हम तो गुरू वशिष्ट की रैगिंग से परेशान हैं। आधी-—आधी रात तक पैर दबवाते रहते हैं।
लेकिन आजकल गुरूओं का ट्रेंड बदल गया है। अब गुरू आधुनिकता की मशीन से बाहर निकलकर आ रहे हैं और गा रहे हैं—धोती कुर्ता छोड़ा, मैंने सूट—बूट डाला...। मुंह में पान मसाला चबाना, सिगरेट पीना इनकी प्रमुख पहचान है। केवल शिक्षा देना ही नहीं बल्कि परीक्षा में पास कराना भी इनकी जिमेदारी होती है। इसके लिए इनके पास अलग से फीस देकर प्राइवेट ट्यूशन पढऩी अनिवार्य होती है। कालेज में ज्यादातर इनका समय दूसरे शिक्षकों के साथ गप्पे मारने, राजनीति पर चर्चा करने, विदेशी संस्कृति की बुराई करने, फिल्मों में दिखाई जा रही अश£ीलता, क्रिकेट मैच में सचिन और धोनी की परफारमेंस पर वाद—विवाद करने में व्यतीत होता है। क्लास में पीरियड लेना ये अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
स्कूल या कालेज में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ करना, उन्हें एसएमएस करना, जर्मप्लाज्म की चोरी करना इनकी प्रमुख गतिविधियों में शामिल है। छात्रों को सुधारने के लिए हाथ—पैर तोडऩे के उनके पास विशेषाधिकार प्राप्त हैं। फिल्मों में अभी इन्हें बड़े रोल नहीं मिल पा रहे हैं। फिल्म में ये केवल क्लास में हीरो—हीरोइनों का आपस में परिचय कराने और लेडी टीचरों के साथ इश्क लड़ाने का कार्य करते हैं। दर्शकों को हंसाने में इनका प्रमुख योगदान रहता है। शिक्षकों की ऐसी महानताओं को ध्यान में रखते हुए हम शिक्षक दिवस मनाते हैं। हमें अपने गुरूओं पर गर्व है।
ईश्वर की एक ऐसी संरचना जिसे देखकर प्राय: बच्चे डर जाते हैं, गुरूजी कहते हैं। गुरूजी के दो पैर, एक नाक, एक मुंह और दो आंखें होती हैं। इनको मास्टर, मास्साब, अध्यापक, प्रोफेसर या सर कहकर पुकारते हैं। इनकी उत्पत्ति रामायण काल से भी पहले की मानी जाती है। उस समय ये जंगलों आदि में नदी किनारे के आश्रमों में पाये जाते थे। तब ये एक साधारण धोती धारण करते थे। छात्र इनके पास आश्रम में रहकर ही शिक्षा ग्रहण करते थे, लेकिन फीस का भुगतान नहीं करते थे। इससे गुरूजी खासे नाराज रहते थे और उनकी रैगिंग स्वयं ही लेते थे। पुरानी खबर है कि आरूणी नाम के एक शिष्य को उसके गुरू ने आधी रात को तेज बारिश में अपने खेत की मेढ़ बनाने भेज दिया। पानी का बहाव बहुत तेज था इसलिए मेढ़ नहीं बन पा रही थी, मगर गुरूजी के डर से वह खुद मेढ़ बनकर वहीं लेट गया। एकलव्य को तो अपने अंगूठे से ही हाथ धोना पड़ गया। भगवान राम और कृष्ण भी इस रैगिंग से अछूते नहीं रह पाए। उस काल में प्रसिद्ध पत्रकार नारद जी को इंटरव्यू के दौरान भगवान राम ने बताया कि हम तो गुरू वशिष्ट की रैगिंग से परेशान हैं। आधी-—आधी रात तक पैर दबवाते रहते हैं।
लेकिन आजकल गुरूओं का ट्रेंड बदल गया है। अब गुरू आधुनिकता की मशीन से बाहर निकलकर आ रहे हैं और गा रहे हैं—धोती कुर्ता छोड़ा, मैंने सूट—बूट डाला...। मुंह में पान मसाला चबाना, सिगरेट पीना इनकी प्रमुख पहचान है। केवल शिक्षा देना ही नहीं बल्कि परीक्षा में पास कराना भी इनकी जिमेदारी होती है। इसके लिए इनके पास अलग से फीस देकर प्राइवेट ट्यूशन पढऩी अनिवार्य होती है। कालेज में ज्यादातर इनका समय दूसरे शिक्षकों के साथ गप्पे मारने, राजनीति पर चर्चा करने, विदेशी संस्कृति की बुराई करने, फिल्मों में दिखाई जा रही अश£ीलता, क्रिकेट मैच में सचिन और धोनी की परफारमेंस पर वाद—विवाद करने में व्यतीत होता है। क्लास में पीरियड लेना ये अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।
स्कूल या कालेज में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ करना, उन्हें एसएमएस करना, जर्मप्लाज्म की चोरी करना इनकी प्रमुख गतिविधियों में शामिल है। छात्रों को सुधारने के लिए हाथ—पैर तोडऩे के उनके पास विशेषाधिकार प्राप्त हैं। फिल्मों में अभी इन्हें बड़े रोल नहीं मिल पा रहे हैं। फिल्म में ये केवल क्लास में हीरो—हीरोइनों का आपस में परिचय कराने और लेडी टीचरों के साथ इश्क लड़ाने का कार्य करते हैं। दर्शकों को हंसाने में इनका प्रमुख योगदान रहता है। शिक्षकों की ऐसी महानताओं को ध्यान में रखते हुए हम शिक्षक दिवस मनाते हैं। हमें अपने गुरूओं पर गर्व है।
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